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सार छंद-होली

सार छंद-होली लाली-लाली परसा फुलवा,जब लागै मनभावन। तोर बिना तब सुन्ना सजनी,मोर हिया के आँगन।1 कोन संग मा रहिके हितवा,हावय कोन मयारू? बोलय होली मा जिवरा हा,सुन गा कका समारू।2 मनखे मतलबिहा कलजुग मा,होगे हावय अतका। छुरा पीठ मा गोभे संगी,जम के मारय मुटका।3 दान धरम पुन असल रंग ए,महिमा ऋषि मुनि गावैं।  पर औगुन के रंग चढ़े ले,असली रंग नँदावैं। ।4                                        दीपक निषाद लाटा बेमेतरा कइसे खेलँव मैंहा होली,खुशी-खुशी हमजोली। मनखे के हिरदै मा नइ हे,दया-मया के खोली।5 दया-मया अउ सेवा सटका,इही मोर बर सजनी। मोर हिया के आँगन मा नइ,अब ये जीवनसँगिनी।6 दया-मया सेवा सजनी बन,जभ्भे दिल म समाही। दान धरम के असल रंग ले,मजा फाग के आही।7                                        दीपक निषाद,लाटा,बेमेतरा जीतेंद्र निषाद 'चितेश' सांगली,जिला-बालोद  🙏🙏