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दामाखेड़ा जाबो

दामाखेड़ा के मेला जाबो दामाखेड़ा के मेला जाबो न, दामाखेड़ा के मेला जाबो न। गुरु चरण के,चरण अमिरत पाबो न, दामाखेड़ा के मेला जाबो न। जिनगी पहावत हे तोर-मोर म, कर लेबो गुरु सुमिरन उही ठउर म। सदगुरु'कबीर' के,गुन गाबो न दामाखेड़ा के मेला जाबो न। जनसेवा ले तैं पुन कमाले, इही काम म,तैं  मन लगाले। गुरु के देवल सत्यनाम ,नइ भुलाबो न, दामाखेड़ा के मेला जाबो न। मद-मोह के मायाजाल ले, मुक्ति मिलही तैं जान ले। ये जग के मेला ठेला,अउ नइ आबो न, दामाखेड़ा के मेला जाबो न। जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद  

पताल चटनी

पताल चटनी पताल चटनी,कइसे खाबो सजनी। सरग ले पाताल होगे एकर मँगनी। सिट्ठा होगे चटनी,धनिया-मिर्चा के जुगाड़ मा। नून बर पइसा नइ मिलै,पइसा के झाड़ मा। नंगत के झुलसावै,महँगाई अगनी। पताल चटनी,कइसे खाबो सजनी। कंँगला मनखे मन ला,नून-तेल अउ दार। जी एस टी के मारे पंसारी,नइ देवय उधार। घर मा राशन नइहे,जुच्छा खोली रंधनी। पताल चटनी,कइसे खाबो सजनी। सिलेंडर होगे तीन सौ ले रुपिया हजार। गाड़ी मा लानँव कइसे,पेट्रोल सौ रुपिया पार। घर के हालत पंचर,नइहे जेब मा चवन्नी। पताल चटनी,कइसे खाबो सजनी। बारो महीना रोजगार,गाँव कोती सरकार। जम्मो झन ला दिही,रुपिया आही भरमार। जांँगर टोर कमाबो,नींद आही रजनी। पताल चटनी,संघरा खाबो सजनी। जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद