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Showing posts from December, 2022

भक्ति दोहा

राम राम के बेर मा,झन कर कउँआ काँव। जप ले जोही नाँव हरि,जिभिया ले हर घाँव।।

शराब

होगा किडनी-लीवर,एक दिन खराब जी। पीना है तो पियो,मुस्कुरा के शराब जी? हमें क्या है करना,ये तुम्हारी है मर्जी। यमराज के द्वार,स्वयं दे रहे हो अर्जी। बीवी-बच्चे भूखे,तुम बने हो नवाब जी? पीना है तो पियो,मुस्कुरा के शराब जी? तुम हो बड़े ज्ञानी,बात किसकी मानी। दूध-दही-घी तुम्हें,लगे विष की रानी। दारू पीकर लगते हो,संत जनाब जी? पीना है तो पियो,मुस्कुरा के शराब जी? तुम्हें मान सदा मिला,अपने समाज में। मस्त रहे तुम,अपने रीति-रिवाज में। जग से जाने के बाद,करना हिसाब जी? पीना है तो पियो,मुस्कुरा के शराब जी? जीतेन्द्र निषाद 'चितेश' सांगली,जिला-बालोद