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हरेली तिहार

हरेली तिहार फाँदै जांँगर बइला ला,खेत सही घानी मा। अन्न बरोबर तेल निकलै,झोंकै जग पेट थारी मा। श्रम के चीला चढ़ावै,देवता मान खेती के औजार ला। दास बरोबर किसनहा मन,जिनगी के हरेली तिहार मा। जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद

माँ बमलई

माँ बमलई मोर मन के तरिया मा,खुशी के पानी लबालब होगे। मां बमलई के दर्शन झेलार मा,भरम कचरा दुरिहा सब होगे। बोलिन मोला बमलई मइया,सदा रइही मोर किरपा छइहाँ। सुख-दुख बिन जिनगी चलय नहीं,फेर नइ होवय दुख के खइहा। अँगना मा आशीष दे हे मइया,लाँघन रहिके कोनो सउँहत नरक नइ भोगे। मां बमलई के दर्शन झेलार मा,भरम कचरा दुरिहा सब होगे। राजाराम असन राजा अब नइ दिखय मइया,कोनो देश-राज मा। कलजुग के राजा खुदे होगे भरपेट बोजइया,अब के राजपाट मा। परजा संग राजा के जनसेवा धरम,सुवारथ दलदल मा,रबारब खोगे। मां बमलई के दर्शन झेलार मा,भरम कचरा दुरिहा सब होगे। घर के मुखिया लोग-लइका ला देवय सत,शील,ईमान के संस्कार  ज्ञान जोत ला अंतस तरी बार के,सदगुण जँवारा बोंवय हर दुआर। घरोघर लिही देवता-देवी अवतार,मनखे संस्कारवान जब होगे। मां बमलई के दर्शन झेलार मा,भरम कचरा दुरिहा सब होगे। जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद

सदगुरू मिलिस नाही

सदगुरु मिलिस नाही,कलजुग के मायाबजार मा। नित हरि गुण गावय,काम करय रसिक राजा के। कलजुग के गुरु भक्ति बिन,सदगुरु बनय परजा के। पाँव परय असल चेला बिछल के गुरु दरबार मा। सदगुरु मिलिस  नाही,कलजुग के मायाबजार मा। चेला का करय,उहू भरम मा परय। गुरु के अलकर करनी नजरबंद रहय। कइसे होही बेड़ापार,जिनगी मझधार मा। सदगुरु मिलिस नाही,कलजुग के मायाबजार मा। घर मा दाई-ददा अउ भाई-बहिनी, लइका-सियान के गजब कहिनी। देखय अउ सुनय बर मिलय,ये संसार मा। सदगुरु मिलिस नाही,कलजुग के मायाबजार मा। संग मा रत्नावली सहीं,जब मिल जावय गुरु। तुलसीदास सहीं चेला,पावय पाठ-पीड़हा शुरु। तब गुरुमंत्र मा तरही मनखे,घर-दुआर,परिवार मा सदगुरु मिलिस नाही,कलजुग के मायाबजार मा। जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद

होली हे

होली हे होली हे होली हे होली हे, होली हे होली हे होली हे। जिहाँ दया के चिन्हा अउ मया के बोली हे, होली हे होली हे होली हे..... कलजुग मा उराठिल मनखे के भाषा, पइसावाला बोलय पइसा के भाषा। गाँव-शहर मा नइ दिखय कान्हा के बासा, जिहाँ पियास बुझावय सुदामा सहीं पियासा। कलजुग मा कान्हा के, सुदामा कहाँ हमजोली हे। होली हे होली हे होली हे..... सुनता के सरु गाय घरोघर खोरी। नान्हें करय बड़का से मुँहजोरी। परिवार मा नइहे बेटा-बहू संस्कारी। निष्काम प्रेम के जे मारय पिचकारी। कलजुग मा सीता-राम सहीं, बहू-बेटा के कहाँ जोड़ी हे। होली हे होली हे होली हे..... बस कलजुग मा नइहे दधीचि,करण सहीं दानी। अब के महादानी दिखावा के चढ़य छानी। सोशल मीडिया मा फोटू भेजय आनी-बानी। अउ दान-धरम के रंग मा होली खेलय पानी-पानी। परमारथ के करमभूमि मा, नि:स्वारथ के कहाँ डोली हे। होली हे होली हे होली हे..... जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद

होवइया बहुरिया चलय ससुरार

होवइया बहुरिया चलय ससुरार गजब के आ गेहे अब नवा दिन,होवइया बहुरिया चलय ससुरार। दाई-ददा के संग,भाई-भौजी के संग,मयारू के नगरिया म पहिली बार। बिन बिहाव के,फलदान के पहिली। का बने,का गिनहा,देखे बर पगली। कलजुग के नवा रीत निभाय बर,मयारू के दुवरिया म पहिली बार। होवइया बहुरिया चलय ससुरार,होवइया बहुरिया चलय ससुरार। का धुरपइयांँ पाँव मा बिहाव होके आबे? बिहाव के पहिली,धुर्रा उड़ाके मइके जाबे। केदे हाथ मा हाँथा देबे,केदे भिथिया?मयारू के  कुरिया म पहिली बार। होवइया बहुरिया चलय ससुरार,होवइया बहुरिया चलय ससुरार। अब कलजुग के पहावत बेरा मा,ये रीत घलो ठीक हे। फेर जुन्ना सियान मन कइथे,ये संस्कार खीक हे। समय के संग चलव अउ जिनगी जी लव,मयारू के दुनिया म पहिली बार। होवइया बहुरिया चलय ससुरार,होवइया बहुरिया चलय ससुरार। जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद  

होली हे

होली हे होली हे होली हे होली हे, होली हे होली हे होली हे। जिहाँ दया के चिन्हा अउ मया के बोली हे, होली हे होली हे होली हे..... कलजुग मा उराठिल मनखे के भाषा, पइसावाला बोलय पइसा के भाषा। गाँव-शहर मा नइ दिखय कान्हा के बासा, जिहाँ पियास बुझावय सुदामा सहीं पियासा। कलजुग मा कान्हा के,सुदामा कहाँ हमजोली हे। होली हे होली हे होली हे..... सुनता के सरु गाय घरोघर खोरी। नान्हें करय बड़का से मुँहजोरी। परिवार मा नइहे बेटा-बहू संस्कारी। निष्काम प्रेम के जे मारय पिचकारी। कलजुग मा सीता-राम सहीं बहू-बेटा के कहाँ जोड़ी हे।  होली हे होली हे होली हे..... कलजुग मा नइहे करण सहीं एक्कोझन दानी। महर्षि दधीचि के हाड़ा सुनावय बलिदान के कहानी। अब दान-धरम के रंग मा होली खेलय,कलजुग के महादानी। सोशल मीडिया मा फोटू भेजय,दिखावा के चढ़य छानी। परमारथ के करमभूमि मा नि:स्वारथ के कहाँ डोली हे। होली हे होली हे होली हे..... जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद

अच्छा दिन

अच्छा दिन आ गे अच्छा दिन हमर आ गे संगी,बीतगे दस साल। अउ होगे हँव मैं खुशहाल संगी,होगे हँव मैं खुशहाल। अच्छा दिन के जुमला वादा करके,चाँद मा जाय के दिखाइस हवय सपना। पंद्रह लाख उड़के हमर खाता मा आ गे,नोटबन्दी मा गहना गुरिया ले,सजगे हमर अंग अंँगना। प्रधानमंत्री आवास योजना के'ओझल महल' के राजा बनाके कर दिस मालामाल। अउ होगे हँव मैं खुशहाल संगी,होगे हँव मैं खुशहाल। पेट्रोल-डीजल बिसाय के हवय मोर बस,फेर अपन गाड़ी ल छोड़के जावत हँव बस मा। काबर पेट्रोलियम पदार्थ हवय आरुग सस्ता,मोर रोजी हवय दुगुना'रोजगार गारंटी'के दम मा। एकरो'निधि'कम होगे सरकारी 'बजट' मा,मिलही बारो महीना रोजगार हर हाल? अउ होगे हँव मैं खुशहाल संगी,होगे हँव मैं खुशहाल। कतिक करँव सरकार के बड़ाई,दवई-खातू के कीमत निच्चट कम हे भाई। लागत कम आथे 'सम्मान निधि'ले,काबर हमर फसल के दाम छूथे ऊँचाई। रइथे किसनहा मन मजा मा,तभ्भे नेता-अभिनेता,दलाल मन लेथे गाड़ी,बनाथे मॉल। अउ होगे हँव मैं खुशहाल संगी,होगे हँव मैं खुशहाल। अच्छा दिन महँगाई जादा होय ले आही,त दिन दुगुनी रात चौगुनी आमजन करही विकास? होही किसनहा,कंगला मन क