बरवै छंद


बरवै छंद

काकर मानी पीबे,संगी आज।
अपन सुवारथ बर सब,करथें काज।।

घूमत हावँव संडा,नइ हे काम।
बिन पइसा के नइ हे,मोरो दाम।।

जेन संगवारी हा,संग रहाय।
बिपत परे मा वोहर,पीठ दिखाय।।

दाई देवय गारी,कर कुछु काम।
ददा सुनावय दू ठन,आठों याम।।

दाई अउ बाई के,झगरा देख।
मिटय हमर घर के अब,सुनता लेख।।

बहिनी घलो सुनावय,संगेसंग।
दशा देख के रइथँव,मैंहा दंग।।

मँदरस बोली लागय,कड़ुवा लीम।
मोला सुख देवइया,भइगे चीम।।

कइसे समझावँव अब,सुध नइ आय।
दिन-रतिहा के चिकचिक,बुध ला खाय।।

सब सियान मन कइथें,सुन ग सुजान।
रीस खाय बुध अउ बुध,खाय परान।।

दे दव थोरिक धीरज,हे भगवान।
बिना रीस के जीयय,हर इंसान।।

जितेन्द्र कुमार निषाद
सांगली,जिला-बालोद,छत्तीसगढ़




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