महाशिवरात्रि लागौं तोर जोहार महादेव,लागौं तोर जोहार । तोर करत हँव गोहार महादेव,आके तोर दुआर। होवत हवय कलजग मा,नंगत के लूट,हत्या अउ भ्रष्टाचार। कतको दुर्जन झोत्था मिलके,करत हवँय दुराचार। दुराचारी मन के नाश करे बर,आजा अपन त्रिशूल मा करके तेज धार। तोर करत हँव गोहार महादेव,आके तोर दुआर। हसदेव जइसे कतको जंगल मा,चलत हवय टंगिया-आरी। जंगली जानवर,चिरई चिरगुन के,नइहे हितवा,नइहे संगवारी। जंगल के विनाश करइया बर तांडव करत,अपन त्रिनेत्र ला फेर खोल दव एक बार। तोर करत हँव गोहार महादेव,आके तोर दुआर। खुद के सुख के चाह मा कतको मनखे मन,नइ चाहय दूसर के हित। वइसन मनखे मन के हिरदय मा भर दव परहित बर लबालब मया पिरीत। तभ्भे होही 'महाशिवरात्रि' के तोर किरपा ले,ए जग अउ कलजुग के उद्धार। तोर करत हँव गोहार महादेव,आके तोर दुआर। जीतेन्द्र निषाद'चितेश' सांगली,जिला-बालोद
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