सरसी छंद
सरसी छंद
पारबती के प्राण पियारा,शिव के गणपति लाल।
अघ्घा सुमिरत हँव मैं तोला,तिलक लगावत भाल।
जग मा आ हे विपदा भारी,कोरोना बन काल।
घर मा खुसरे मनखेमन के,होगे बारा हाल।
कोरोना संकट हा झटकुन,जग ले अब मिट जाय।
सुनले हे गणपति गणराजा,एकर बता उपाय।
पूरा पानी मा बूड़े हे,कतको खेती-खार।
कतको घर-कुरिया ओदरगे,अइसन विपदा टार।
महँगाई हा धीरे धीरे,बिक्कट बाढ़त जाय।
माल रपोटय बैपारी हा,कँगला जेब दिखाय।
रोज कमाके खरतरिहा मन,कहाँ पेटभर खाय।
दूध भात खाके बइठाँगुर,रोज्जे मजा उड़ाय।
ऊँच-नीच के भेद मिटे अब,सबो पेटभर खाय।
अइसन किरपा होय गजानन,कोनो दुख झन पाय।
जितेन्द्र कुमार निषाद
सांगली,गुरुर,जिला-बालोद
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