आल्हा छंद

आल्हा छंद-अमर बिलासा दाई

शुरू करत हँव एक कहानी,मातु बिलासा जेकर नाँव।
परशु राम केंवट के बेटी ,जनम धरिन वो लगरा गाँव।

माँ बैसाखा एकर माता,दया-मया के हीरा खान।
पाय इही गुण मातु बिलासा,जीयय जिनगी संत समान।

कटकट जंगल रिहिस अबड़ के,अरपा नदिया भुँइया तीर।
घूमत पहुँचय रामा केंवट,उहाँ बनालिस अपन कुटीर।

कलकल करके गीत सुनावय,अरपा नदिया पानी संग।
घूमर घूमर के नाचय वन,केंवट कुनबा घलो मतंग।

हरियर हरियर डारा-पाना,कोयल कूकय कुलकै अंग।
अइसे लागय कोनो योद्धा,बिन लड़ई के जीतय जंग।

गंगा कस पबरित हे अरपा,जेमा नंगत राहय धार।
केंवट कुनबा मछरी मारय,डोंगा खेवय फाँदा डार।

थरथर काँपे अरपा नदिया,धरे बिलासा माँ पतवार।
डोंगा खेवय चाल बढ़ावय,सबो मरद मन मानय हार।

एक बार जम्मों मनखे मन,गेय रिहिन अरपा के घाट।
वन के बरहा हमला कर दिस,वोकर गरदन रख दिस काट।

जघा जघा बड़ चरचा होवय,मातु बिलासा मारय तीर।
बइरी मन के हिरदे बेधय,रख देवय छाती ला चीर।

मरद बरोबर मातु बिलासा,साँय साँय चालय तलवार।
बइरी मन अधरे ले भागे,घोड़ा मा जब होय  सवार।

मातु बिलासा जब किकियावय,बइरी धुर्रा सहीं उड़ाय।
केती जावय कहाँ भठय वो,जग मा कभू नजर नइ आय।

आँखी ले जब अँगरा बरसय,बइरी मन हो जावय राख।
पाख अँजोरी घलो लजावय,अइसन महतारी के साख।

रिहिन गाँव के बेटा वंशी,होइस ओकर संग बिहाव।
धनुष चलावय भाला फेंकय,मातु बिलासा करे हियाव।

राज रतनपुर के राजा हा,नाँव रिहिन जेकर कल्याण।
जंगल जावय बनय शिकारी,अधरे लटकय ओकर प्राण।

देख दशा राजा के वंशी ,लाइस वोला अपन निवास।
करय बिलासा दाई सेवा,नइ होवय राजा के नास।

बने बने घर जावय राजा,अपन बुलाइन वोहर राज।
मातु बिलासा-वंशी जावय,अइसे लागय मिलगे ताज।

कर दिस राजा अरपा तट के,जम्मों जागीर उँकर नाम।
अमर बिलासा दाई होगे,अउ बिलासपुर बनगे धाम।

मरयादा मा मातु बिलासा,सदा करिन हर काम महान।
करम धजा ला आघू लावय,संस्कृति के  राखय हर मान।

मान बढ़ावय केंवट मन के,जस बगरय धरती पाताल।
केंवट कुल के कुलदेवी हा,जस ले कर दिस मालामाल।

जितेन्द्र कुमार निषाद
सांगली,पलारी,जिला-बालोद




























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