आल्हा छंद
आल्हा छंद
गाँव-शहर मा सबो मनावौ,जुरमिल के देवारी आज।
बिन झगड़ा अउ झंझट के गा,करव सदा सुग्घर हर काज।।
करे किसनहा अब का संगी,बिन मउसम होवय बरसात।
एसो के देवारी मा अब,धान लुवाये जरई आत।।
छाए हवय उदासी घर मा,कइसे हर्षित दीप जलाय।
अब दिनभर दुख के आगी हा,रही रहीके भभकत जाय।।
लाँघन मन ला भात खवावौ,मानवता के अलख जगाव।
संगीमन अब देवारी मा,झोला भरके पुन्न कमाव।।
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