दोहा छंद-कपाट

दुख के काँटा मा भरे,जिनगी के हर बाट ।
बंद परे हे मोर गा,सुख के भाग कपाट ।।

अँधियारी चारो मुड़ा,अउ नइ दिखे कपाट ।
लकर-धकर मा गिर जबे,जाही फूट ललाट ।।

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