दुर्मिल सवैया

दुर्मिल सवैया

हिजगा करबे इरखा बढ़ही,तिसना करबे जिवरा जरही।
कथनी-करनी अलगे रइही,जब स्वारथ मा मनखे परही।
पुन के धन-दौलत हा घटही,जब पाप घड़ा लउहा भरही।
सिरतोन उही जग मा तरही,परमारथ जे मनखे करही।

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