दोहा छंद-करबे कब हरि भजन
जिनगी भर मनखे परे,तोर-मोर के फेर ।
करबे कब गा हरि भजन,होवत अब्बड़ बेर।।
मोह-मया मा सब फँसे,कोन करय हरि ध्यान।
समय मिले मा जप करय,संत उही ला मान।।
धन-दोगानी बर पड़े,काबर हर इंसान।
राम नाम धन सार हे,राम नाम धन जान।।
मया करव सब राम ले,राम नाम हे सार।
बिना राम के हे कहाँ,जिनगी के आधार।।
राम हरे नाविक बड़े,नाम जपे ले आय।
भवसागर के धाम ले,बेड़ा पार लगाय।।
राम नाम के मंत्र ला,कर लव मन से जाप।
धोवा जाही तब हमर,जिनगी के हर पाप।।
जितेन्द्र कुमार निषाद
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