सोभन छंद

सोभन छंद

ढोंगिया जे साधु हावय,खाय छप्पन भोग।
देय गीता ज्ञान भारी,संत मानय लोग।।
प्रेम से अउ साफ-सुथरा,जे मिलय उन खाय।
बिन सुवारथ ज्ञान बाँटय,संत उही कहाय।।

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