रोला छंद
रोला छंद-जितेन्द्र कुमार निषाद
राधा कड़ही राँध,डार के आमा अमली,
दही मही नइ शुद्ध,चना के बेसन असली।
मिलवट के ए दौर,दार मा माटी गोटी,
बनिया रोज मिलाय,हवय नीयत हा खोटी।।
सबो जिनिस हा आज,एकदम हावय नकली,
करे अबड़ नुकसान,रोग होवय जी असली।
जे मनखे हा खाय,संग नइ देवै गुर्दा,
चिटिक बछर के बाद,चिता मा पहुँचे मुर्दा।।
पइसा सेती झार,लोभ मा मनखे पड़ के।
मानवता ला भूल,करय मिलवट अब बड़ के
अपन सुवारथ छोड़,डरव सब मानव हरि ले।
कभू काकरो फेर,घेंच झन रेतव तरि ले।
छंदकार-जितेन्द्र कुमार निषाद
गाँव-सांगली,पोस्ट-पलारी
तहसील-गुरुर,जिला-बालोद
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