दोहा छंद-बनिहार

मालिक मन बनिहार ले,लेथे अब्बड़ काम ।
वोकर एवज मा उचित,नइ देवय गा दाम ।।

बनी करय बनिहार हा,गाँव-शहर मा खोज ।
तभ्भे मिलथे पेट भर,पानी पसिया रोज ।।

चाहत हँव मैं रोज के,चटनी बासी खाँव ।
तन के जाँगर पेरके,धरती ला सिरजाँव ।।

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