दोहा छंद
दोहा छंद
एक बिता ए पेट बर,बनी करय बनिहार।
बड़हर मन के द्वार मा,खोज-खोज के झार।।
संझा-बिहना रात-दिन,अब्बड़ करथे काम।
नइ देखय बनिहार मन,जुड़ पानी अउ घाम।।
खेत-खार घर-बार मा,गाँव -शहर परदेस।
सबो जघा बनिहार हा,मिहनत करय बिसेस।।
कतको झन बनिहार ला,देथे गारी सोज।
तभो कलेचुप काम ला,हँस के करथे रोज।।
छितका कुरिया मा रथे,खाके बासी पेज।
तभो रथे बनिहार खुश,बिन जठना अउ मेज।।
Comments
Post a Comment