हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद

फल मेहनत के चीख लव,होथे अबड़ गुरतुर सहीं ।
जे चीख लेथे एकदम,भावै नहीं अउ फल कहीं।।
चोरी-चमारी छोड़ दव,अब चोरहा मन गाँव मा।
मिहनत करव जाके शहर ,अउ खाव फल हर ठाँव मा।।

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