कज्जल छंद
कज्जल छंद
पबरित पोरा के तिहार।
गाँव-शहर मा मजा मार।।
चुरे हवय रोटी अपार।
जेन करा हे रोजगार।।
एसो होगे बुराहाल।
खेती होगे हमर काल।।
बिन पानी के हे दुकाल।
ऊपरवाला अब सम्हाल।।
का पीसन अब रोज-रोज।
जाँता मा अब खोज-खोज।।
लागा-बोड़ी दीस बोज।
मिलय नहीं भरपेट भोज।।
बइला छेल्ला फिरै खेत।
कोन करत हे तको चेत।।
सउँहे ला खेदार देत।
मूरति पूजा करै नेत।।
जीतेन्द्र निषाद "चितेश"
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