छन्न पकैया छन्न पकैया छंद

छन्न पकैया छन्न पकैया

छन्न पकैया छन्न पकैया,पूरा आ हे भारी।
खेत-खार घर-द्वार बुड़े हे,बुड़त हवय नर-नारी।

छन्न पकैया छन्न पकैया,जेवय का भर थारी। 
लाँघन भूखन मरत हवय अब,लइका अउ महतारी।

छन्न पकैया छन्न पकैया,हाँसत हे बैपारी।
करय मुनाफाखोरी भइया,माल रपोटय भारी।

छन्न पकैया छन्न पकैया,देखत हे लाचारी।
ऊपरवाला जम्मों झन के,हवय मौन अहु दारी।

जितेन्द्र कुमार निषाद

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