दोहा छंद

वैप्रचित्त दानव करिस,जग मा हाहाकार ।
रक्तदंतिका रूप धर,दिये दाँत मा मार ।।

धरे खड़ग तलवार माँ,बना अचंभित रूप ।
रक्तबीज के नास बर,भागे धूपे-धूप ।।

नव दिन के नवरात मा,देवी दरसन योग ।
माई के आसीस ले,जिनगी मा सुख भोग ।।

जिनगी के नवरात मा,सुख हर चइत कुँवार ।
देवी दरसन मौत के,जनम-मरण के द्वार ।।

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