सुंदरी सवैया
सुंदरी सवैया
कतको मनखे डिगरी धर के,बइला कस घूमत हावय संडा।
बइपार करे बिन खेत म काम करे बिन,वो
पड़ जावय ठंडा।
बढ़ई दरजी कर वो नइ दे अरजी,नइ सीखय ए हथकंडा।
जब शासन सेवक के नइ हे पदवी ,श्रम से जल पी भर हंडा।
अढ़हा मनखे हर पालत पोसत,बेचत हे कुकरी अउ अंडा।
अउ जीयत हे जिनगी सुख से,कुनबा सँग मा सिखके श्रम फंडा।
डिगरीधर चोर सहीं करनी करके,बड़ खावय पोलिस डंडा।
करनी कर ले अब जाँगर टोरत,ए भुँइया म इही धन हंडा।
जितेन्द्र कुमार निषाद
सांगली,पलारी,जिला-बालोद
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