रूपमाला छंद
फूल खाही भोज
सोन होगे एक रोटी,कंगला का खाय।
रोज करथे काम तभ्भो,पेट नइ भर पाय।
पेट मा खाँचा खनागे,या हमागे भूत।
झार महँगाई सताथे,सुन ग बड़हर पूत।
बड़ जमाखोरी करय जी,सेठ साहूकार।
दर बढ़ावय माल पावय,अउ करय बइपार।
सेठ सेती कंगला हा,खाय आधा पेट।
पूर नइ पावय ग पइसा,बाढ़गे जब रेट।
ठोसहा कानून होवय,ध्यान दे सरकार।
जेन हा अलकर करय जी,चार टेम्पा मार।
बंद भ्रष्टाचार होही,अन्न पाही रोज।
कंगला बड़हर सबो झन,फूल खाही भोज।
जितेन्द्र कुमार निषाद
सांगली,गुरुर,जिला-बालोद
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