अरविंद सवैया

अरविंद सवैया

कतको मनखे मन के घर मा,नइहे सुमता सुनता कस छाँव।
जब सास-बहू हर रोज करें,हिजगा करके कउँआ कस काँव।
पइसा बर होवय गा झगरा,छुटका
-बड़का भइया कइ घाँव।
सँघरा रइही मिल के लगही,झगरा बिन स्वर्ग बरोबर ठाँव।

जितेन्द्र कुमार निषाद

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