चौपई छंद

चौपई छंद

सुन किसान के पीरा आज। बोलत हावय केंवटराज।।
आठ पहर उन करथे काम। दिनभर जरैं काम मा चाम।।

चाहे सब्जी या हो धान। करथे कीरा बड़ परसान।
रोग निवारक दवई डार। होवय शाखा दू ले चार।।

करथे माहू अतियाचार। पक जाथे जब फसल ह मार।।
फेर खेत मा दवई डार। खरचा बढ़थे कई हजार।।

महिनत करय धान उपजाय। बूँद-बूँद मा घड़ा भराय।।
बिन बादर बरसा हो जाय। फेर करा-पानी डरवाय।।

कतको झन के घर मा धान। खावय मुसवा लेवय प्रान।।
ऊपर ले सुरही शैतान। रोज करय अब्बड़ हलकान।।

मंडी मा जब जावय धान। ठाड़ होय बनिया के कान।। 
औने-पौने लेवय दाम। अउ किसान के बिगड़े  काम।।

कइसे बनही सबल किसान। ऋण मा खोवत हावय प्रान।।
मिलके अइसन करव उपाय।कमई खावत दिवस पहाय।।

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