कविता



हमर घर मा हमर कोठी,भरे हावय धान।
सोच के झन घूम बेटा,काम मा दे ध्यान।।
कतिक दिन ले पूरही गा,सिराही सब खान।
मेहनत ले पेट भरही, कथे सबो सियान।।

जेन बइठे खाय बेटा,कहाँ खाही भात।
चोर बनके पेट भरही,अबड़ खाही लात।।
पुलिस डंडा मारही गा,छूट जाही प्रान।
काम करबे ठीक तभ्भे ,बने रइही शान।।

आन हे तब शान हे जी,बिना एकर लाश।
मोर तै आधार बेटा,खेल झन गा ताश।।
सबो धन ला फूँकबे तब,कहाँ पाबे धान।
छोड़ दे अब जुआँ खेलइ,मोर कहना मान।।

रोज पीबे दारु बेटा,अपन करबे नाश।
तोर लीवर दारु खाही,सोचबे तै काश।।
फेर डॉक्टर मेर जाबे,लिही अब्बड़ दाम।
त्याग दे अब दारु पियई,बने रइही चाम।।

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