दोहा-पेड़
दोहा छंद-पेड़
जम्मों जग के पेड़ ला,घर के मुखिया जान।
बरसावय जल फूल फर,सब बर एक समान।।
देवय रुख ताजा हवा,बिन पइसा बिन दाम।
धरती कस दानी हवय,देना रुख के काम।।
बैद बरोबर दे दवा,जड़ी-बुटी अउ छाल।
कतको रुख के गुण इही,बनय रोग बर काल।।
छइहाँ देवय पेड़ हा,जम्मों बर वरदान।
जे सुरतावय छाँव मा,पावय सरग समान।।
सुक्खा लकड़ी पेड़ के,मनखे आग जलाय।
घर घर मा जेवन चुरय,मजामार सब खाय।।
कतको लकड़ी हा बनय,सोफा अउ दीवान।
दरवाजा पल्ला बनय,बाढ़य घर के शान।।
सर-गल के हर पात हा,बनय खेत बर खाद।
धरती उबजय सोन बड़,कृषक होय आबाद।।
पेड़ रहय ले हर जघा,बिक्कट बरसा होय।
गरमी मा पानी मिलय,तब प्यासा नइ रोय।।
धरती हरियर जब दिखय,सबके मन ला भाय।
दुख पीरा ला भूल के,मनखे खुशी मनाय।।
पेड़ रहय ले जानवर,जंगल मा सब पाय।
कभू नीर के खोज मा,गाँव डहर नइ आय।।
देवय लासा पेड़ हा,आवय नंगत काम।
कुटका कुटका चीज हा,जुड़ जावय हर शाम।।
पेड़ हरे गुणवान बड़,जग बर संत समान।
करय भलाई रोज के,बिना सुवारथ जान।।
करव जतन सब पेड़ के,नाती-पूत समान।
झन काटव धन लोभ मा,हवय पेड़ से प्रान।।
जीतेन्द्र निषाद "चितेश"
सांगली,गुरुर,जिला-बालोद
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