अमृतध्वनि छंद-बनिया

अमृतध्वनि छंद

मंडी लेगे धान ला,नइ पावय जब दाम।
होके दुखी किसान हा,रोवत बोलय राम।।
रोवत बोलय,बनिया मन के,हरे जमाना।
कम कीम्मत मा,लेके नंगत,भरे खजाना।
बढ़िया नइ हे,तोर धान हा,चाँउर खंडी।
वापिस लेजा,बनिया बोलय,पहुँचय मंडी।

बनिया बोलय टेड़गा,सिर धर रोय किसान।
काबर अबड़ मिलाय तैं,कउहा फर सँग धान।।
कउहा फर सँग,खखरा-बदरा,हावय अतका।
फुतका नंगत,तोर धान मा,कीम्मत वतका।
तउलइया हा,माँगय झटका,पीयय पनिया।
चाहा पीयय,पाला वाली,हाँसय बनिया।

बनिया मारय पेट ला,का अब करय किसान।
अइसे लागय गोठ हा,हिय ला मारय बान।।
हिय ला मारय,बान बरोबर,वोकर बोली।
करके नखरा,बिना तमंचा,मारय गोली।
अड़त अड़तिया,काटे नंगत,पहिरे मनिया।
लाहव लेवय,मंडी के सब,मुंशी-बनिया।

जीतेन्द्र निषाद "चितेश"
सांगली,गुरुर,जिला-बालोद

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