बरवै छंद-हरेली


हरे हरेली पहिली,हमर तिहार।
करय किसनहा मन हा,सदा जुहार।।

खेती संग मितानी,घर-संसार।
रोजी-रोटी देवय,खेत हमार।।

करय किसनहा कइसे,खेती काम।
बढ़त हवय खातू के,नंगत दाम।।2

लादन देवय एसो,दुकानदार।
हर दुकान के होगे,नाटक झार।।

ट्रेक्टर ले जोताई,होवत आज।
कोन करत नाँगर ले,खेती काज।।

नौं सौ रुपिया घंटा,लेवत दाम।
ट्रेक्टरवाला मन के,बनगे काम।।

कइसे होय किसनहा,के उद्धार।
घेरी-बेरी आथे,इही बिचार।।

अब बिन खुशी हरेली,कइसे आय।
महँगाई जिनगी ला,बड़ झुलसाय।।

जीतेन्द्र निषाद "चितेश"
सांगली,गुरुर,जिला-बालोद

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