किसानी गीत
बरस जा रे बादर
बरस जा रे बादर,बरस जा रे बादर,
बिन पानी के होवत हे,खेत हमर चातर।
नइ हे कोनो किसनहा के,सुध लेवइया,
सरकार पड़े हे पीछू,कुर्सी के भइया।
बाँध के पानी कारखाना वाला बर,
रोवत हे किसनहा मन माथा धर।
तोर माथे रइथे,खेती के जाँगर,
बरस जा रे बादर,बरस जा रे बादर।
लागा बोड़ी होगे,कतको जोतई-फंदई मा,
खेत-खार,बीज भात अउ निंदई-कोड़ई मा।
मुरझावत हे धान-पान अउ दर्रा हाने खेत हे,
आँसू चुचवावत किसनहा के चेत,बिचेत हे।
बन जा किसनहा के खेत बर,तैं अमरित के सागर,
बरस जा रे बादर,बरस जा रे बादर।
जीतेन्द्र निषाद "चितेश"
सांगली,गुरुर,जिला-बालोद
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