बरवै छंद-चिरहा चीर
बरवै छंद-चिरहा चीर
हमर गाँव के तरिया,रद्दा तीर।
मैं देखेंव एक झन,खड़े फकीर।
ओकर तन मा आरुग,चिरहा चीर।
ओला देख मोर मन,होय अधीर।
जग मा कइसे जीयत,हे इंसान।
मनखे कोती दे प्रभु ,चिटिक धियान।
मोर स्वप्न मा कइथे,हरि भगवान।
तैंहा लइका जइसे,निचट नदान।
हरे पश्चिमी फैशन,ए परिधान।
मोला दोष अतिक झन,दे इंसान।
अतिक समझ नइ पाइस,तोर जमीर।
लगै असल बड़हर हा,असल फकीर।
पहिरत हावय कपड़ा,बाँध जँजीर।
टूरा मेछराय बस,टूरी तीर।
चिरहा चीर पहिर के,मारय टेस।
नव फैशन नइ जानस,टार 'चितेश'।
जीतेन्द्र निषाद 'चितेश'
सांगली,जिला-बालोद
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