हरिगीतिका छंद

                हरिगीतिका छंद
अब का करे लाचार जनता,घूस बर बाबू पड़े।
हर रोज सरकारी ठिहा मा,खाय अधिकारी बड़े ।।
देवत हवै चुपचाप जनता,हाथ मा कुर्सी तरी।
अब घूस ले कलजुग म बनथे,काम हा काबर सरी।।

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