बरवै छंद

बरवै छंद

घाम अबड़ हे संगी,लागे प्यास ।
घर मा नइये पानी,टूटे आस ।।

तरिया-नरवा सुक्खा,अब्बड़ दूर ।
चार कोस मा पानी,हे भरपूर ।।

रुखराई ला काटे,नइये छाँव ।
मनखे के ये करनी,खेले दाँव।।

समय रहत ले जागव,पेड़ लगाव ।
सरग सहीं सब छँइहाँ,अपन बनाव ।।

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