कविता
छत्तीसगढ़ के माटी ले उबजे,सोनहा धान के बाली ग ।
चारो मुड़ा बोहावत गंगा,नदी,नरवा अउ नाली ग ।
संझा-बिहनिया पारत पाटी,रापा धरे नर-नारी ग ।
कायाफूल चढ़ावै भुँइयाँ,करय खेती बारी ग ।
हरियर हरियर खेती-खार,घाम घलो संगवारी ग ।
नाचे करमा,गाये ददरिया,रोपा लगावै नर नारी ग ।
लहलहावत जिहाँ भइया,मया के ओनहारी ग ।
एक लोटा देके पानी,पहुना भजन दुआरी ग ।
नइ सोवय कोनो लांघन-भूखन,राजा-रंक भिखारी ग ।
पेटभर मिलय,पेटभर खावय,खावय बरा सोंहारी ग ।
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