हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद

नवरात के नवदिन म भज लौ,मातु के नवरूप ला।
हे माँ भवानी राखबे तैं,दूर दुख के धूप ला।।
लाँघन मरे कोनो कभू झन,एक बीता पेट बर।
आशीष बरसाबे सदा तैं,अन्न सब घर चेत कर।।

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