दोहा छंद
दोहा छंद
जम्मों जतका पेड़ हे,घर के मुखिया मान।बरसाथे जल फूल फर,सब बर एक समान।।
देथे रुख ताजा हवा,बिन पइसा बिन दाम।
धरती कस दानी हवय,देना एकर काम।।
बैद बरोबर दे दवा,डारा-पाना छाल।
हर मनखे ला पेड़ हा,बनय रोग बर काल।।
सुक्खा लकड़ी पेड़ के,मनखे आग जलाय।
घर घर मा जेवन चुरय,मजामार के खाय।।
इमारती लकड़ी बनय,बड़ सोफा-दीवान।
दरवाजा पल्ला बनय,बाढ़य घर के शान।।
सर गल के हर पात हा,बनय खाद उपजाउ।
धरती उबजय सोन बड़,बनय कंगला दाउ।।
पेड़ रहय ले हर जघा,बिक्कट बरसा होय।
गरमी मा पानी मिलय,मनखे तब नइ रोय।।
धरती हरियर जब दिखय,सबके मन ला भाय।
दुख पीरा ला भूल के,मनखे खुशी मनाय।।
पेड़ रहय ले जानवर,जंगल मा सब पाय।
कभु पानी के खोज मा,गाँव डहर नइ आय।।
देवय लासा पेड़ हा,आवय नंगत काम।
कुटका कुटका चीज हा,जुड़ जावय हर शाम।।
पेड़ हरे गुणवान बड़,जग बर संत समान।
करय भलाई रोज के,बिना सुवारथ जान।।
करव जतन अब पेड़ के,समझव पूत समान।
झन काटव धन लोभ मा,हवय पेड़ से प्रान।।
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