दोहा-झन खोवव ईमान

झन खोवव ईमान

आज सुवारथ बर बनत,मनखे मन शैतान।
भाई-भाई चीज बर,होवत लहूलुहान।।

पर के बेटी ला घलो,अपने बेटी जान।
फेर इहाँ शैतान मन,लूटत अपने मान।।

करय मुनाफाखोर मन,अबड़ कमाई रोज।
महँगाई बाढ़े बिकट,बजट बिगाड़े सोज।।

रिश्वत बिन अब होय नइ,हर सरकारी काज।
अधिकारी मन ला घलो,लागे नइ अब लाज।।

चलव सम्हल के थोरकिन,झन खोवव ईमान।
गोड़ लड़खड़ाही कहूँ,थेभा दिहि भगवान।।

धरती मा भगवान हा,छोड़ सरग के धाम।
खोजत आवय तोर घर,अइसन होवय काम।।

जीतेन्द्र निषाद "चितेश"

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