दोहा-रक्तदान

दोहे 

रक्तदान के काम मा,सरलग कर सहयोग।
अपन लहू ला दान कर,परमारथ सुख भोग।।

रक्तदान के अहमियत,एक सिखावै पाठ।
पर के जिनगी नित बचा,झन कर हिरदै काठ।।

जगही जब संवेदना,पर के दुख ला देख।
मानवता तभ्भे रही,मनखे तरी सरेख।।

मानवता के गुण बिना,रक्तदान नइ होय।
कतको मनखे प्राण ला,बिपत परे मा खोय।।

धर सकथे विपदा कभू,दुर्घटना कस रूप।
प्रसवकाल के संग मा,रक्तस्त्राव कस कूप।।

हीमोफिलिया संग मा,ल्यूकिमिया के रोग।
अइसन रोगी ला लगै,सदा लहू के भोग।।

सदा जरूरतमंद बर,अपन लहू ला देव।
इसन रक्तदाता सदा,अघुवा रह स्वयमेव।।

जीयत भर देके लहू,अपन कमा ले साख।
फेर मरे के बाद तैं,होबे संगी राख।।

जीतेन्द्र निषाद 'चितेश'
सांगली,जिला-बालोद

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