रोटी पीठा-दोहा छंद
रोटी पीठा-दोहा छंद
पपची बिड़िया ठेठरी,खुरमी कस पकवान।
खाके कतको झन बनँय,शूरवीर बलवान।।
जेन करी लाड़ू चखँय,उन ओकर गुण गाँय।
भीम बरोबर बाहुबल,अपन भुजा मा पाँय।।
रोग असन अरि मन डरँय,भागँय उन रण छोड़।
रोग निरोधक शक्ति ले,देह रहँय बेजोड़।।
मिलँय जिहाँ पकवान ए,हर घर सरग समान।
जग मा अइसन धाम हें,छत्तीसगढ़ महान।।
रोटी पीठा के असल,करत हवंँव गुणगान।
तइहा निर्मल हर जिनिस,रिहिन शुद्ध पकवान।।
खाए पीए के जिनिस,जहर बरोबर जान।
जग मा नइ हें शुद्ध जी,अब कोनो सामान।
मनखे मन के मन तरी,कस के लोभ हमाँय।
मिलवट करके खल बनँय,पइसा फकत कमाँय।।
पइसा हा सब कुछ नहीं,जग मा पुण्य कमाव।
मानवता के पाठ ला,सीखव खुदे सिखाव।।
जैविक खेती सब करँय,ए पद्धति हे सार।
तभ्भे मिलही अन्न मन,शुद्ध कृषक बाजार।।
रइही सेहत हा बने,शुद्ध अन्न सब खाँय।
रोटी पीठा के असल,मजा रोज के आँय।।
जीतेन्द्र निषाद 'चितेश'
सांगली,जिला-बालोद
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