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Showing posts from October, 2020

दोहा हरि भजन

दोहा जिनगी भर मनखे परे,तोर-मोर के फेर । करबे कब गा हरि भजन,होवत अब्बड़ बेर।। कतको पर के घेंच ला,काट बने धनवान। धन-दौलत ला ही असल,मानय वो भगवान।। कँगला मनखे आन बर,दे दे हिरदे चान।। लाँघन भूखन कब करय,वोहा हरि के ध्यान।। तिसना-हिजगा मा मरे,अतका हर इंसान। नंगत धन ला जोड़ के,कभू करय नइ दान।। दया-मया बिन जीव हा,कहाँ परम सुख पाय। दुख के नद मा बूड़ के,जिनगी भर पछताय।। ए माया संसार मा,हवय वैष्णवी जोर। जीना हवय यथार्थ मा,इह माया के खोर।। सदा निखारय वैष्णवी,हमर सबो संबंध। दया-मया जागृत करय,अइसे करय प्रबंध।। सांसारिक स्वार्थी मया,करय अबड़ नुकसान। भक्ति मार्ग बर ए हरे,बाधक असुर समान।। हरि दरसन ला पाय बर,झन परिवार तियाग। धर्म शास्त्र कइथे घलो,घर मा साध विराग।। वेद व्यास भगवान शिव,ऋषि वशिष्ठ कुलवंत। अउ अत्री महराज हा,रिहिन गृहस्थी संत।। मोह-मया मा सब फँसे,कोन करय हरि ध्यान। समय मिलय मा जप करय,संत उही ला मान।। धन-दोगानी बर पड़े,काबर हर इंसान। राम नाम धन सार हे,राम नाम धन जान।। मया करव सब राम ले,राम नाम हे सार। बिना राम के हे कहाँ,जिनगी के आधार।। राम हरे नाविक बड़े,नाम जपे ले आय। भवसागर के धाम ले,बेड़ा पार लग

सुंदरी सवैया आही

सुंदरी सवैया  कइसे कब ए जग मा अब प्रेम भरे दिन ला  मनखे मन पाही। इरसा तज के मनखे मन हा सबके भलई बर हाथ बढ़ाही। बइरीपन ला तज के मनखे मन हा मितवा सबके बन जाही। रइही अपनापन हा जग मा तब प्रेम भरे दिन हा फिर आही।

अमृतध्वनि छंद-बनिया

अमृतध्वनि छंद मंडी लेगे धान ला,नइ पावय जब दाम। होके दुखी किसान हा,रोवत बोलय राम।। रोवत बोलय,बनिया मन के,हरे जमाना। कम कीम्मत मा,लेके नंगत,भरे खजाना। बढ़िया नइ हे,तोर धान हा,चाँउर खंडी। वापिस लेजा,बनिया बोलय,पहुँचय मंडी। बनिया बोलय टेड़गा,सिर धर रोय किसान। काबर अबड़ मिलाय तैं,कउहा फर सँग धान।। कउहा फर सँग,खखरा-बदरा,हावय अतका। फुतका नंगत,तोर धान मा,कीम्मत वतका। तउलइया हा,माँगय झटका,पीयय पनिया। चाहा पीयय,पाला वाली,हाँसय बनिया। बनिया मारय पेट ला,का अब करय किसान। अइसे लागय गोठ हा,हिय ला मारय बान।। हिय ला मारय,बान बरोबर,वोकर बोली। करके नखरा,बिना तमंचा,मारय गोली। अड़त अड़तिया,काटे नंगत,पहिरे मनिया। लाहव लेवय,मंडी के सब,मुंशी-बनिया। जीतेन्द्र निषाद "चितेश" सांगली,गुरुर,जिला-बालोद

दोहा-कइसे बनही खाद

दोहा छंद रसायनिक हर खाद हा,खेती बर नुकसान। होवय बंजर खेत हा,बोलय गुणी सियान।। धान-पान हर साग हा,भइगे जहर समान।। छींचय मनखे खेत मा,बिखहर दवई लान।। कतको बिखहर चीज ला,खावय हर इंसान। आनी-बानी रोग ले,खोवय अपन परान।। पैरा-भूसा धान के,गरवा बर नुकसान। बिखहर दवई छींच के,मनखे लेवय जान।। कतको बड़े किसान हा,करय किसानी झार। आम पपीता जाम मा,खातू-दवई डार।। पक्का केरा आम हा,नइ हे निमगा आज। रोज रसायन डार के,बनिक बनय यमराज।। तेल फूल अउ दार मा,नइ हे अब प्रोटीन। खातू-दवई लील दिस,सबो विटामिन जीन।। बिखहर दवई खेत मा,झन डारव ग किसान। तभे रही सेहत बने,इही बात ला मान।। पालव घर मा गाय गरु,दूध-दही सब पाव। गोबर-कचरा रोज के,घुरवा मा पहुँचाव।। घर ले दुरिहा गाँव मा,घुरवा सबे बनाव। कूड़ा-कचरा डार के,जम्मों रोग भगाव।। गोबर-पैरा संग मा,घुरवा मा तैं डार। सर-गल के बनही इही,जैविक खातू सार।। घुरवा खातू खेत बर,अमरित कलश समान। राखय सदा सजीव ए,खेत-खार खलिहान।। पोषक क्षमता खेत के,जैविक खाद बढ़ाय। उपजाऊपन हा बढ़य,माटी नरम रहाय।। जैविक घुरवा खाद हा,लागत घलो बचाय। माटी बर ए खाद हा,असल मितान कहाय।। झिल्ली ले घुरवा भरे,कइसे बनही खाद। धन

दोहा-पेड़

दोहा छंद-पेड़ जम्मों जग के पेड़ ला,घर के मुखिया जान। बरसावय जल फूल फर,सब बर एक समान।। देवय रुख ताजा हवा,बिन पइसा बिन दाम। धरती कस दानी हवय,देना रुख के काम।। बैद बरोबर दे दवा,जड़ी-बुटी अउ छाल। कतको रुख के गुण इही,बनय रोग बर काल।। छइहाँ देवय पेड़ हा,जम्मों बर वरदान। जे सुरतावय छाँव मा,पावय सरग समान।। सुक्खा लकड़ी पेड़ के,मनखे आग जलाय। घर घर मा जेवन चुरय,मजामार सब खाय।। कतको लकड़ी हा बनय,सोफा अउ दीवान। दरवाजा पल्ला बनय,बाढ़य घर के शान।। सर-गल के हर पात हा,बनय खेत बर खाद। धरती उबजय सोन बड़,कृषक होय आबाद।। पेड़ रहय ले हर जघा,बिक्कट बरसा होय। गरमी मा पानी मिलय,तब प्यासा नइ रोय।। धरती हरियर जब दिखय,सबके मन ला भाय। दुख पीरा ला भूल के,मनखे खुशी मनाय।। पेड़ रहय ले जानवर,जंगल मा सब पाय। कभू नीर के खोज मा,गाँव डहर नइ आय।। देवय लासा पेड़ हा,आवय नंगत काम। कुटका कुटका चीज हा,जुड़ जावय हर शाम।। पेड़ हरे गुणवान बड़,जग बर संत समान। करय भलाई रोज के,बिना सुवारथ जान।। करव जतन सब पेड़ के,नाती-पूत समान। झन काटव धन लोभ मा,हवय पेड़ से प्रान।। जीतेन्द्र निषाद "चितेश" सांगली,गुरुर,जिला-बालोद