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किसानी गीत

बरस जा रे बादर बरस जा रे बादर,बरस जा रे बादर, बिन पानी के होवत हे,खेत हमर चातर। नइ हे कोनो किसनहा के,सुध लेवइया, सरकार पड़े हे पीछू,कुर्सी के भइया। बाँध के पानी कारखाना वाला बर, रोवत हे किसनहा मन माथा धर। तोर माथे रइथे,खेती के जाँगर, बरस जा रे बादर,बरस जा रे बादर। लागा बोड़ी होगे,कतको जोतई-फंदई मा, खेत-खार,बीज भात अउ निंदई-कोड़ई मा। मुरझावत हे धान-पान अउ दर्रा हाने खेत हे, आँसू चुचवावत किसनहा के चेत,बिचेत हे। बन जा किसनहा के खेत बर,तैं अमरित के सागर, बरस जा रे बादर,बरस जा रे बादर। जीतेन्द्र निषाद "चितेश" सांगली,गुरुर,जिला-बालोद

कुण्डलिया छंद-कहना मान

गहना बड़का जान लव,मीठ मया के बोल। मान रखै जे बोल के,मनखे उन अनमोल।। मनखे उन अनमोल,अपन करनी जे परखे, कथनी-करनी आन,रखै कलजुग के मनखे। कहना मान "चितेश",उचित हे जेकर कहना, कथनी-करनी कर्म,सोन ले बड़का गहना। जीतेन्द्र निषाद "चितेश"

हरेली गीत

*हरेली* -------------- जिनगी ला महकाय हरेली।  पिंवरा धान असन अंतस ला खातू दे हरियाय हरेली। । ढरकत आँसू बीच ददरिया के सुर घलो लमाय हरेली।   लोंदी खवा गऊ-गरवा ला  पबरित नता जनाय हरेली। । खेती के औजार पूज के गुन माने ल सिखाय हरेली।  मन के  बल  के गेंड़ी ले बिपदा-चिखला नहकाय हरेली।। गुरतुर-गुरतुर गुरहा चीला के संग अबड़ मिठाय हरेली। बइगा मन के मंत्र जाप ले धरम धजा फहराय हरेली। ।  लीम डार ला खोंच घरो- घर पर्यावरण बचाय हरेली।  सबो डेहरी खिला ठेंस के सुख-सम्मत अमराय हरेली। । भाँठा-चौंरा, गली-गुड़ी मा सुनता ला बगराय हरेली।  गाँव-गँवई अउ कृषि संस्कृति ला सुघ्घर उजराय हरेली। ।                ---दीपक निषाद---बनसाँकरा (सिमगा)

बरवै छंद-हरेली

हरे हरेली पहिली,हमर तिहार। करय किसनहा मन हा,सदा जुहार।। खेती संग मितानी,घर-संसार। रोजी-रोटी देवय,खेत हमार।। करय किसनहा कइसे,खेती काम। बढ़त हवय खातू के,नंगत दाम।।2 लादन देवय एसो,दुकानदार। हर दुकान के होगे,नाटक झार।। ट्रेक्टर ले जोताई,होवत आज। कोन करत नाँगर ले,खेती काज।। नौं सौ रुपिया घंटा,लेवत दाम। ट्रेक्टरवाला मन के,बनगे काम।। कइसे होय किसनहा,के उद्धार। घेरी-बेरी आथे,इही बिचार।। अब बिन खुशी हरेली,कइसे आय। महँगाई जिनगी ला,बड़ झुलसाय।। जीतेन्द्र निषाद "चितेश" सांगली,गुरुर,जिला-बालोद