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Showing posts from March, 2023

दोहा-रक्तदान

दोहे  रक्तदान के काम मा,सरलग कर सहयोग। अपन लहू ला दान कर,परमारथ सुख भोग।। रक्तदान के अहमियत,एक सिखावै पाठ। पर के जिनगी नित बचा,झन कर हिरदै काठ।। जगही जब संवेदना,पर के दुख ला देख। मानवता तभ्भे रही,मनखे तरी सरेख।। मानवता के गुण बिना,रक्तदान नइ होय। कतको मनखे प्राण ला,बिपत परे मा खोय।। धर सकथे विपदा कभू,दुर्घटना कस रूप। प्रसवकाल के संग मा,रक्तस्त्राव कस कूप।। हीमोफिलिया संग मा,ल्यूकिमिया के रोग। अइसन रोगी ला लगै,सदा लहू के भोग।। सदा जरूरतमंद बर,अपन लहू ला देव। इसन रक्तदाता सदा,अघुवा रह स्वयमेव।। जीयत भर देके लहू,अपन कमा ले साख। फेर मरे के बाद तैं,होबे संगी राख।। जीतेन्द्र निषाद 'चितेश' सांगली,जिला-बालोद

बरवै छंद-चिरहा चीर

बरवै छंद-चिरहा चीर हमर गाँव के तरिया,रद्दा तीर। मैं देखेंव एक झन,खड़े फकीर। ओकर तन मा आरुग,चिरहा चीर। ओला देख मोर मन,होय अधीर। जग मा कइसे जीयत,हे इंसान। मनखे कोती दे प्रभु ,चिटिक धियान। मोर स्वप्न मा कइथे,हरि भगवान। तैंहा लइका जइसे,निचट नदान। हरे पश्चिमी फैशन,ए परिधान। मोला दोष अतिक झन,दे इंसान। अतिक समझ नइ पाइस,तोर जमीर। लगै असल बड़हर हा,असल फकीर। पहिरत हावय कपड़ा,बाँध जँजीर। टूरा मेछराय बस,टूरी तीर। चिरहा चीर पहिर के,मारय टेस। नव फैशन नइ जानस,टार 'चितेश'। जीतेन्द्र निषाद 'चितेश' सांगली,जिला-बालोद

दोहा जपले जोही

सादर समीक्षा हेतु दोहा छंद-जप जोही हरि नाँव ला राम राम के बेर मा,झन कर कउँआ काँव। जप जोही हरि नाँव ला,जिभिया ले हर घाँव।। कल्लर कइयाँ ले कभू,मिलै नहीं सुख-चैन। अंतस मा होथे दरद,दिन लागै ना रैन।। गोठ सियानी प्रेम के,मूर्ख समझ नइ पाय। कीलिर कालर होय ले,घर हा नरक जनाय।। सहनशीलता अउ सुमति,दू ठन हवय उपाय। जेकर ले परिवार मा,सुख सम्मत नित छाय।। जीतेन्द्र निषाद 'चितेश' सांगली,जिला-बालोद

दोहा-हाट बजार

दोहा छंद-हाट बजार जग के माया हाट मा,छै ठन हवय विकार। काम-क्रोध अउ द्वेष सँग,लोभ-मोह अहँकार।।   छै विकार से जेन हा,खुद ले पाही पार। जग के माया हाट मा,ओकर जय-जयकार।। शक्ति शांति गंभीरता,पवित्रता अउ प्यार। ज्ञान खुशी ये सात गुण,पा सत्संग बजार।। असल सात सद्गुण जिनिस,बिकट बिसा तैं रोज। खुद के हिरदै भीतरी,अइसन पसरा खोज।। मिलही माया हाट मा,सरग बरोबर छाँव। जपबे हरि के नाँव ला,घड़ी-घड़ी हर ठाँव।। जीतेन्द्र निषाद 'चितेश' सांगली,जिला-बालोद