Posts

Showing posts from September, 2020

अरविंद सवैया

*आज के अभ्यास - अरविंद सवैया* भइगे मनखे रसहीन घलो,कतको बढ़िया कविता सुन रोज। सुन थोर कही बहुते बढ़िया,करही  बड़ शोर उही हर ओज। कर पुस्तक आज विमोचन गा,कल तो मुड़ के नइ देखय सोज। मनखे मन ला कवि फोकट मा,जब बाँटय वोकर नंगत खोज ।

दोहा छंद-करबे कब हरि भजन

जिनगी भर मनखे परे,तोर-मोर के फेर । करबे कब गा हरि भजन,होवत अब्बड़ बेर।। मोह-मया मा सब फँसे,कोन करय हरि ध्यान। समय मिले मा जप करय,संत उही ला मान।। धन-दोगानी बर पड़े,काबर हर इंसान। राम नाम धन सार हे,राम नाम धन जान।। मया करव सब राम ले,राम नाम हे सार। बिना राम के हे कहाँ,जिनगी के आधार।। राम हरे नाविक बड़े,नाम जपे ले आय। भवसागर के धाम ले,बेड़ा पार लगाय।। राम नाम के मंत्र ला,कर लव मन से जाप। धोवा जाही तब हमर,जिनगी के हर पाप।। जितेन्द्र कुमार निषाद

दोहा छंद-दाई बाबू

दाई बाबू संग मा,बड़का ये भगवान । कर ले सेवा रोज के,तर जाबे इंसान ।।

दोहा छंद

झिल्ली ले घुरवा भरे,कइसे बनही खाद । धनहा अउ परिया बनय,कब आही जी याद ।। गोबर पैरा संग मा,घुरवा मा तैं डार । सर-गल के बनही इही,खातू सबले सार ।।

दोहा छंद

बंदौ मइया सरसती,चरण कमल मा तोर । अँधयारी मन खोर मा,कर दे ग्यान अँजोर ।।

कविता

छत्तीसगढ़ के माटी ले उबजे,सोनहा धान के बाली ग । चारो मुड़ा बोहावत गंगा,नदी,नरवा अउ नाली ग । संझा-बिहनिया पारत पाटी,रापा धरे नर-नारी ग । कायाफूल चढ़ावै भुँइयाँ,करय खेती बारी ग । हरियर हरियर खेती-खार,घाम घलो संगवारी ग । नाचे करमा,गाये ददरिया,रोपा लगावै नर नारी ग । लहलहावत जिहाँ भइया,मया के ओनहारी ग । एक लोटा देके पानी,पहुना भजन दुआरी ग । नइ सोवय कोनो लांघन-भूखन,राजा-रंक भिखारी ग । पेटभर मिलय,पेटभर खावय,खावय बरा सोंहारी ग ।

दोहा छंद

एती ओती झन करव, खोर म कचरा ढेर । कूड़ादान म डार के, मच्छर ले मुँह फेर ।। माढ़े पानी मा सदा,डेंगू मच्छर होय । करन सफाई अब हमन,आवव मिल सब कोय  ।।     

कविता

करजामाफ होगे ओकर,जेकर बैंक म कर्ज । केसीसी,सहकारी समिति म,हावय नाम दर्ज । बसुंदरा मन के का होहि ?समझ नी आय साफ, करे सौतेलापन,समझें ! करजामाफी  फर्ज ।

दोहा

लिखथस भइया तै बने ,बढ़िया दोहाकार । अमित कन्हैया गुरु हमर,सबके दोष सुधार ।। माने हँव मैं गुरु अपन,चेला मोला मान । टिकरीवाला हर लिखय,जानैं छंद विधान ।। साधक बनके साधना,छन्द विधा मा जोर । अरुण निगम के हाथ मा,नव साधक के डोर ।।

दोहा छंद

किस्सा कुर्सी के सुनव,पद बर हाहाकार । नाक-कान फूटन लगे,कइसन ये सरकार ।।

दोहा छंद-राजिम मेला

माँघी पुन्नी मा लगय,राजिम मेला धाम । दान पुन्न कतको करय,मनखे प्रभु के नाम ।। राजिम मेला धाम मा,मन के कचरा फेंक । नेकी गठरी बाँध के,करले पुन्न अनेक ।।

दोहा छंद-महतारी

महतारी ममता करे,सौंहत देवी जान । सात धार के दूध पी,लइका होय जवान ।।1 महतारी के मान कर,झन कर गा अपमान । पाल पोंसके तोर बर,बनगे माँ भगवान ।।2  कर ले पूजा रोज के,मंदिर-मस्जिद छोड़ । तीन लोक मा नइ मिलै,माँ के कोनो जोड़ ।।3 लाँघन भूखन माँ रहै,लइका खावै सेब । लइका भूलै बाढ़ के,माँ मा देखै एब ।।4 महतारी के पाँव मा,हावय चारो धाम । कर ले सेवा रोज के,बनही बिगड़े काम ।।5

दोहा छंद-कपाट

दुख के काँटा मा भरे,जिनगी के हर बाट । बंद परे हे मोर गा,सुख के भाग कपाट ।। अँधियारी चारो मुड़ा,अउ नइ दिखे कपाट । लकर-धकर मा गिर जबे,जाही फूट ललाट ।।

दोहा छंद-ओंकारेश्वर धाम

दरसन कर शिवलिंग के,ओंकारेश्वर धाम । बन के भँवरा जाप कर,तैं हर शिव के नाम ।। आज महाशिवरात हे,बम बम बंदे बोल । मन के बिख ला शिव हरे,तब हे तन के मोल ।। आज महाशिवरात के,चढ़े भक्ति के रंग । दरसन भोलेनाथ के,जुरमिल करबो संग ।।

दोहा छंद-फागुन

नाचे डंडा नाच जब,फागुन  आवै  याद । गावै मनखे डाँहकी, फाग गीत  के बाद ।।1 फागुन पुन्नी तीर हे,गावव होली गीत। भाईचारा रंग मा,रंगे बैरी मीत ।।2 बड़े बिहनिया गाँव मा,छेना धरके जाय । राख अंग मा बोथ के,मनखे घर मा आय ।।3 काम वासना लेस के,होली सफल  बनाव। मया प्रीत के रंग ला,सबला घोर लगाव।।4 रांधे फागुन मा कहे,चइत फेर सब खाय । कहिथे सकल सियान मन,बात सहीं का पाय ।।5 जितेन्द्र निषाद

दोहा छंद

जड़काला होगे खतम,आगे फेर बसंत । नइ लागै गरमी तको ,मउँसम रहिथे कंत ।।

दोहा छंद-जोते खेत किसान

नाँगर बइला फाँद के,जोंतय खेत किसान । खून पसीना छींच के,उपजावय उन धान ।। संझा बिहना रोज के,जावय खेत किसान । सेवा धरती के करे,दाई बाबू मान ।।

दोहा छंद

बहिनी भाईदूज के,बाँधे रक्षा ताग । भाई ले आसीस बर,रइथे सुग्घर पाग ।।

दोहा छंद-भाजी साग

खाले अघ्घन राँध के,पालक भाजी साग । खून कमी के रोग हा,जाही तन ले भाग ।।     

दोहा छंद

होथे नारी सरसती,विद्या देवय रोज । गुरुकुल मा चेला करे,नवा ग्यान के खोज ।।

दोहा छंद-तीजा तिहार

तीजा परब तिहार मा,बहिनी मइके आय । पबरित भादो मास मा,सुग्घर तीज मनाय ।। चउथ बिराजे गजवदन,रिषी पंचमी आय । बइगा मन के ये परब,जड़ी-बुटी बड़ खाय ।। 

दोहा छंद

बाजा गाजा संग मा,भोला जाय बरात । लाड़ू मोतीचूर के,उसर कुसर के खात ।।

दोहा छंद

तरिया गोदी काम ला,गैंती धरके कोड़ । माटी झउहाँ जोर के,फेंक पार जी तोड़ ।।

दोहा छंद

महतारी भाखा हमर,छत्तीसगढ़ी जान । दाई बाबू संग मा,हमरो इही जुबान ।।

दोहा छंद

चाहत हँव मैं एक दिन,करँव अंग ला दान । आवय पूरा काम गा,तन के सब सामान ।।

दोहा छंद

लोकतंत्र के खेत मा,हवय चुनावी रोग । नेता मन फाँफा सहीं,चुहक करत हे भोग ।। जनता मुखिया खुद चुनै,लोकतंत्र के नींव । पसिया बर जनता मरे,मुखिया पीयय घींव ।।

दोहा छंद-बनिहार

मालिक मन बनिहार ले,लेथे अब्बड़ काम । वोकर एवज मा उचित,नइ देवय गा दाम ।। बनी करय बनिहार हा,गाँव-शहर मा खोज । तभ्भे मिलथे पेट भर,पानी पसिया रोज ।। चाहत हँव मैं रोज के,चटनी बासी खाँव । तन के जाँगर पेरके,धरती ला सिरजाँव ।।

दोहा छंद

वैप्रचित्त दानव करिस,जग मा हाहाकार । रक्तदंतिका रूप धर,दिये दाँत मा मार ।। धरे खड़ग तलवार माँ,बना अचंभित रूप । रक्तबीज के नास बर,भागे धूपे-धूप ।। नव दिन के नवरात मा,देवी दरसन योग । माई के आसीस ले,जिनगी मा सुख भोग ।। जिनगी के नवरात मा,सुख हर चइत कुँवार । देवी दरसन मौत के,जनम-मरण के द्वार ।।

दोहा छंद

कंचन कुंडल कान मा,टिकली माथ लगाय । नयना काजर आँज के,सजनी सम्हरत जाय ।।

दोहा छंद

दाई बाबू रोज के,खावै बासी पेज । बाई बुध मा देय बर,बेटा करे गुरेज ।। ये जिनगी अनमोल हे,दया-मया झन छोड़ । मँदरस बानी बोल के,सबले नाता जोड़ ।।

दोहा छंद

राम राम के बेर मा,झन कर कउँआ काँव । भज ले संगी राम ला,खुशी मिले हर घाँव ।। राम नाम मा जोर हे,कर संगी तैं जाप । अतका पुन्न सकेल ले,होय कभू झन पाप ।।

दोहा छंद

मन मा भज ले राम ला,रोज सुबे अउ शाम । बनही बिगड़े बात हा,भवसागर के धाम ।।

दोहा छंद

नशा नाश के जड़ हरे,झन कर मदिरापान । मँदहा अतका जान ले,किडनी बर नुकसान ।।

दोहा छंद-अपन परिचय

मोर नाँव जीतेन्द्र हे,रथँव सांगली गाँव । ददा जगेशर राम हे,माँ के चम्पा नाँव ।।1 दू झन लइका मोर गा,दूनो टूरा ताय । अब्बड़ हे अतलंगहा,तब्भो जिया लुभाय ।।2 तरिया नरवा तीर मा,खेत खार घर द्वार । बोथँव भाजी चेंच गा,बेचँव कँवर बजार ।।3 बनी भूति करथँव कभू,गाँव शहर मा खोज  । तब्भे मिलथे पेट भर,पानी पसिया रोज ।।4 दोहा रोला छंद मा,रचथँव रचना रोज । करथँव हिरदै भीतरी,नवा ग्यान के खोज ।।5

दोहा छंद-माँदी भात

विषय-माँदी भात बर बिहाव के शान ए,लाड़ू मोतीचूर। खावव संगी खोज के,मौका हे भरपूर।। काबर माँदी भात के,मनखे करथें साध। हर समाज के रीत ये,लादय कर्ज अबाध।। बिना कलेवा होय नइ,काबर माँदी भात। कतको मनखे ला करय,जीते जी आघात।। निःपुरतः बर बोझ ए,बड़हर बर ए शान। हर समाज ये जान लव,खोवत कोन परान।। मरनी म घलो खाव जी,चोग्गर सादा भात। बिना कलेवा तान के,खावव तातेतात।। जइसन पुरे खवाव जी,अइसन होय रिवाज।। तभ्भे बनही विश्व मा,सुघ्घर संत समाज।। जीतेन्द्र निषाद "चितेश" सांगली,गुरुर,जिला-बालोद

उल्लाला छंद

काम वासना छोड़ के,कर संगी तैं जाप जी । तन के जतका रोग हे,जाही अपने आप जी ।।

उल्लाला छंद

करव सदा मतदान गा,नेक हरे ये काम । लोकतंत्र मा देश बर,सुघ्घर पावन धाम ।।

उल्लाला छंद

दही मथे माखन बने ,चुरे पके मा घीव । बाँचे खुँचे मही बने,पीके बनव सजीव ।।

उल्लाला छंद

करव जतन सब पेड़ के,हावय ये अनमोल जी । देवत रहिथे ये हवा,बिन माँगे हिल डोल जी ।।

उल्लाला छंद

पीयव पानी रोज के,करसी के बड़ शान से । फिरिज हरे देसी इही ,निकले कुम्हरा खान से ।।

उल्लाला छंद

आज अतिक अँधउर चले,बिन सोचे बद बोल के । जंग चुनावी खोर मा,मुखिया कहे टटोल के ।।

उल्लाला छंद

गाँव डहर मजदूर हा,होथे बड़ मजबूर जी । पानी पसिया खोज बर,जाथे घर ले दूर जी ।।

उल्लाला छंद

आलस अलकर छोड़ सब,दिनभर करथे काम जी । बेरा मा बनिहार हा,अउ जपथे जयराम जी ।।

उल्लाला छंद

लक्ष्मण सीता राम हा,बन बन घूमैं संग जी। खावय कांदा फूल फर,जीते जिनगी जंग जी ।।

उल्लाला छंद

मन मा भज लव राम ला,झन किंजरव सब धाम ला । कहिथे वेद पुरान हा,संगी सजन सुजान हा ।। 1

उल्लाला छंद

मन के कचरा फेंक जी,नेकी नदिया छेंक जी । बने करम के मोठरी,झन कर घुरवा कोठरी ।।

उल्लाला छंद

सजनी साजन संग मा,पहिरे गहना अंग मा । अबड़ बिसाये सोन जी,सपना मा सिरतोन जी ।।

उल्लाला छंद

चोवाचन्दन तन चुपर,कहाँ चले चितचोर । रंग सलोना साँवला,भावै मन ला मोर ।।

उल्लाला छंद

सौंहत हिरदै राम हे,मन्दिर मा का काम हे । भज लव संगी रोज के,अंतस अंदर खोज के ।।

उल्लाला छंद

बइठे बिमला माइके,बिहई रंग रचाइके । जिनगी के सुख छोड़ के,साजन ले मुँह मोड़ के ।।

उल्लाला छंद

घर-घर दोना भर धान धर,ठाकुर देवा धाम जी । दिन अक्ती के जाथे सबो,करथे बुँअई काम जी ।।

दोहा छंद-महानदी

महानदी हर दिन बहे,मोर गाँव के छोर । तभो पियासा हे मरत,काबर खेती मोर ।।1 दूध नदी के तीर मा,जहर दूध के माँग। महुँआ पानी संग मा,पीयय मनखे भाँग ।। 2 बस्तर मा इंद्रावती,होवत लहू लुहान । नक्सलवादी धार हा,लेवत कतको जान ।।3 बेजा कब्जा बाढ़गे,अरपा नदिया तीर। कूड़ा कचरा हे भरे,नइ हे आरुग नीर।।4 हसदो हाँसे कोरिया,अबड़ कोयला खान । निकले धुर्रा रोज के,जम्मो बर नुसकान ।।5

उल्लाला छंद

हे राम नाम मा जोर गा,जप लव जम्मो रोज गा । तब भवसागर ले ऊबरै,कतको मनखे सोज गा ।

उल्लाला छंद

जग मा जोत जँवारा जले,सत्यनाम के रोज गा। कर लव संगी पहिचान गा,अंतस अंदर खोज गा ।।

उल्लाला छंद

बरसा बादल बन बिना,नइ होवय संसार मा । झन काटव अब पेड़ ला,गाँव शहर अउ खार मा ।।

उल्लाला छंद

रिश्ता जोड़व राम ले,नाता तोड़व काम ले । पार लगाही राम जी,भवसागर के धाम जी ।।

उल्लाला छंद

सरी मँझनिया बाढ़गे,अब्बड़ जादा घाम हा । निकलव घर ले झन बहिर,झुलस जही गा चाम हा ।।

सोरठा छंद

रवी फसल के शान,चना गहूँ अउ लाखड़ी । बोथे अबड़ किसान,हमर गाँव के खार मा ।।

रोला छंद

                  रोला छंद मलेरिया के रोग,होय जब मच्छर काटे, हरदम काँपे देह,ठंड मा छाती फाटे । तीर-तार ला रोज,करव जी साफ सफाई, पाटव डबरा खोज,इही मा हवय भलाई ।

रोला छंद

                   रोला छंद आलू छाँट निमार,हाट ले लावौ ताजा, आरुग अच्छा साग,हरे ए सब्जी राजा । नइये निमगा आज,खेत मा छींचे महुरा, जैविक खेती छोड़,लोभ मा मनखे बहुरा ।। गोबर खातू डार,खेत मा सबले जादा, नइ होवय नुकसान,रही धरती हा सादा । मनखे गे हे भूल,आज अब कोन बतावैं, दवई-दारू छींच,फसल जम्मों उपजावैं ।।

कुण्डलिया छंद

              कुण्डलिया छंद बढ़गे अब्बड़ घाम हा,तीपत हावय चाम । नाक कान ला बाँध के,करव खेत मा काम ।। करव खेत मा काम,गाँव के सब नर नारी । खाली-पीली फेर,करव झन फोकट चारी । दे जीतेन्दर राय,बेंदरा रुख मा चढ़गे । कर लव गा आराम,घाम हा अब्बड़ बढ़गे ।

कुण्डलिया छंद

                   कुण्डलिया छंद दोसी हावय कोन अब,जलके होगे खाख । कतको लइका आज गा,कोचिंग मा नइ साख ।। कोचिंग मा नइ साख,मौत के बनगे सेंटर, जरके मरिस अतेक,रहीगे देखत मेंटर । खो दिस बेटा फेर,अकेल्ला होगे मोसी, गिरगे दुख के गाज,कोन हे एकर दोसी ।

कुण्डलिया छंद

                   कुण्डलिया छंद लइका मोर जवान हे,पढ़-लिख के बेकार । करे नहीं कुछु काम अब,घूमै खारे-खार ।। घूमै खारे-खार,लगाके चश्मा टोपी । बनके रसिया रोज,अपन बर खोजे गोपी । नइ माने कुछु बात,लात मा मारे फइका । संगी साथी संग,मंदहा बनगे लइका ।।

रोला छंद

            रोला छंद हार जीत के आज,नतीजा आगे ताजा। मुखिया लोभी फेर,देश के बनगे राजा। बुआ भतीजा संग,शत्रु के बजगे बाजा। पप्पू माथा टेक,चोरहा के दरवाजा।

कुण्डलिया छंद

                  कुण्डलिया छंद सत के रद्दा मा चलव,झूठ लबारी छोड़ । परमारथ के काम ले,संगी नाता जोड़ ।। संगी नाता जोड़,त्याग के अपन सुवारथ, धीरज धरम समेत,होय झन पाप अकारथ । जीतेन्दर के मान,रही मानवता जतके, दया-मया बरसात,होय रद्दा मा सत के ।

कुण्डलिया छंद

           कुण्डलिया छंद छींचे मनखे खेत मा,अब्बड़ डीपी खाद । जैविक खेती छोड़ के,करे भूल आबाद ।। करे भूल आबाद,लोभ मा पइसा सेती, दवई दारू छींच,करे महुरा के खेती । मरगे मनखे आज,रोग मा गड़गे नीचे, धरती दाई रोय,खेत मा काबर छींचे ।

कुण्डलिया छंद

               कुण्डलिया छंद आथे सबके अंगना,पहुना कभू कभार । लगथे जइसे देवता,हमर पधारे द्वार ।। हमर पधारे द्वार,करँव गा कइसे स्वागत, नइये चाँउर दार,रोज महँगाई बाढ़त । कर सकेंव नइ मान,सगा हा पर घर खाथे, अइसन हे अब हाल,अंगना पहुना आथे ।

छप्पय छंद

                 छप्पय छंद बढ़गे गरमी आज,होय हे थरथर चोला । सूखावत मुँह कान,भूख नइ लागै मोला ।। पीथँव अब्बड़ जूस,तभो ले लागै सुस्ती । कइसन करँव उपाय,बदन मा आवय चुस्ती ।। पंखा कूलर झाँझ मा,करे नहीं अब काम जी । तन मन होही शांत कब,कइसे मिले अराम जी ।।

बरवै छंद

बरवै छंद घाम अबड़ हे संगी,लागे प्यास । घर मा नइये पानी,टूटे आस ।। तरिया-नरवा सुक्खा,अब्बड़ दूर । चार कोस मा पानी,हे भरपूर ।। रुखराई ला काटे,नइये छाँव । मनखे के ये करनी,खेले दाँव।। समय रहत ले जागव,पेड़ लगाव । सरग सहीं सब छँइहाँ,अपन बनाव ।।

छप्पय छंद

छप्पय छंद तरिया गोदी काम,देख के अचरज होथे । आरुग उथली कोड़,बीज महिनत के बोथे ।। बनगे सबो अलाल,चार इंची अब कोड़े । कइसे होय विकास,मेट के माथा फोड़े ।। फोकट मा सब देय के,पंगु करे सरकार हा । रोवत हे सरपंच हा,कइसे बनही पार हा ।।

बरवै छंद

बरवै छंद जल बिन परिया परगे,बखरी मोर । टूटे बिजली खम्भा,ठप हे बोर ।। बिजली अधिकारी के,नइये ध्यान । आठ दिवस अब होगे,हँव हलकान ।।

सरसी छंद

                    सरसी छंद (16-11) दिनभर चारी करथस बिन्दा, गली गली मा रोज । का सोना का चाँदी मिलथे,नइ बोलस तैं सोज ।।1 राम नाम मा ध्यान लगाले, बनही बिगड़े काम । परनिन्दा मा घलो रात मा, मिले नहीं आराम ।।2

सरसी छंद

                      सरसी छंद  हल्ला-गुल्ला झन कर संगी,मातम के हे काज । दारू पीके दिनभर करथस ,नइ आवय जी लाज ।। कतको मनखे दारू पीके,शोक मनावै आज । तभो कलेचुप सब करनी ला,देखत हवय समाज  ।।

सरसी छंद

                  सरसी छंद योग करव सब मिलके संगी,होही बदन निरोग । दिखही सुघ्घर कोमल काया,मिटे मानसिक रोग ।।

सरसी छंद

                सरसी छंद झाँझ हवय गा भारी संगी,तन-मन हे बेचैन । बड़ चुचवावत हवय पछीना,उमस हवय दिन-रैन ।। खेत-खार मा रुख-राई हा,खड़े हवय जी मौन । नइ डोलत हे डारा-पाना,हवा दिही जी कौन ।। झन काटव जी रुख-राई ला,करव जतन पुरजोर । हरियर-हरियर धरती दिखही,जग मा चारों ओर ।। सरसर-सरसर गर्रा चलही,नइ होवय जी हाय । बढ़िया बारिश होही भइया,अइसन करव उपाय ।।

अमृतध्वनि छंद

              अमृत ध्वनि छंद पढ़ -लिख के संगी कभू,झन घूमव बेकार । काम करव कुछु रोज के,मिलही पइसा चार ।। मिलही पइसा,गाँव-गली मा,खेत-खार मा । काम करे ले,हवय फैक्टरी,नहर पार मा । बड़े शहर मा,सबो डहर हे,सइकिल मा चढ़ । धरके बासी,काम करे बर,कतको लिख-पढ़ ।

कुकुभ छंद

कुकुभ छंद नाचे तांडव शंकर भोला,पहिरे बघवा छाला जी । रूप हवय गा भारी भरकम,गोभ दिही का भाला जी ।। आँखी फाड़े देखत हावय,तिरछा-तिरछा भोला जी । आँखी ले आगी बरसत हे,बड़का-बड़का गोला जी ।। लेसा के मर जाही जम्मों,जेहा आगू जाही जी । सोच-समझ के जाहू आगू,दूसर कोन बचाही जी ।। कोन मनाही शिव भोला ला,काकर हिम्मत हे भारी । जेन मनाइस शिव भोला ला,पारवती उन महतारी ।।

दोहा छंद

दोहा छंद विषय-हरेली के बेरा,किसान के पीरा अब किसान के पीर ला,देखत हावय कौन। दर्रा हाने खेत ला,देख किसनहा मौन।। कहाँ बियासी खेत मा,होहे संगी आज। बिन पानी के हे परे,खेती के सब काज।। बम्हरी काँटा ले भरे,जम्मों धनहा खेत। निंदई बिना किसान के,होगे चेत-बिचेत।। नाँगर-बइला फाँद के,देखे गगन किसान। बोले हरदम खेत मा,बरसा कर भगवान।। परब हरेली आज हे,सुग्घर खुशी मनाय। जम्मों दुःख भुलाइके,जिनगी अपन पहाय।।

बरवै छंद-राखी

बरवै छंद राखी हावय पबरित,हमर तिहार । सावन पुन्नी के दिन,बँटे दुलार ।। बहिनी बाँधे राखी,भइया हाथ । तिलक लगावै रोली,चमकै माथ ।। बैरी बनगे मनखे,आज मितान । करय निर्भया घटना,बन शैतान ।। बहिनी खातिर भइया,दे वरदान । तोर लाज बर देहूँ,मैंहा प्रान ।। हे भाई-बहिनी के,मया अपार । रहय सदा जगदीश्वर,सुन गोहार ।। जीतेन्द्र निषाद "चितेश"

ताटंक छंद

ताटंक छंद  लहर लहर लहराय तिरंगा,ए भारत के माटी मा। राष्ट्रगान सब गावै मनखे,गाँव गली हर घाटी मा।। सरग सहीं अब लागे संगी,भारत के चारों कोती। याद करँय बलिदानी मन ला,जलै अमर दीया जोती।। भारत माँ के रक्षा खातिर,होइन बड़ बलिदानी जी। अंग्रेजन सन लड़त-लड़त गा,खो दिन अपन जवानी जी।। अपन लहू ले लिखिन संग मा,मिलके नवा कहानी जी। खुदीराम अउ भगत वीर के,नइ हे कोनो सानी जी।। भारत माता गदगद होगे,पाके अइसन बेटा जी। रण मा दाई के अँचरा ला,गर मा डारिन फेंटा जी।। हाँसत-हाँसत चढ़गे सूली,कतको रिहिन अगोरा मा। भारत माँ के योद्धा बेटा,आजादी के जोरा मा।। जीतेन्द्र निषाद "चितेश"

दोहा छंद

दोहा छंद जम्मों जतका पेड़ हे,घर के मुखिया मान।बरसाथे जल फूल फर,सब बर एक समान।। देथे रुख ताजा हवा,बिन पइसा बिन दाम। धरती कस दानी हवय,देना एकर काम।। बैद बरोबर दे दवा,डारा-पाना छाल। हर मनखे ला पेड़ हा,बनय रोग बर काल।। सुक्खा लकड़ी पेड़ के,मनखे आग जलाय। घर घर मा जेवन चुरय,मजामार के खाय।। इमारती लकड़ी बनय,बड़ सोफा-दीवान। दरवाजा पल्ला बनय,बाढ़य घर के शान।। सर गल के हर पात हा,बनय खाद उपजाउ। धरती उबजय सोन बड़,बनय कंगला दाउ।। पेड़ रहय ले हर जघा,बिक्कट बरसा होय। गरमी मा पानी मिलय,मनखे तब नइ रोय।। धरती हरियर जब दिखय,सबके मन ला भाय। दुख पीरा ला भूल के,मनखे खुशी मनाय।। पेड़ रहय ले जानवर,जंगल मा सब पाय। कभु पानी के खोज मा,गाँव डहर नइ आय।। देवय लासा पेड़ हा,आवय नंगत काम। कुटका कुटका चीज हा,जुड़ जावय हर शाम।। पेड़ हरे गुणवान बड़,जग बर संत समान। करय भलाई रोज के,बिना सुवारथ जान।। करव जतन अब पेड़ के,समझव पूत समान। झन काटव धन लोभ मा,हवय पेड़ से प्रान।।

कज्जल छंद

कज्जल छंद पबरित पोरा के तिहार। गाँव-शहर मा मजा मार।। चुरे हवय रोटी अपार। जेन करा हे रोजगार।। एसो होगे बुराहाल। खेती होगे हमर काल।। बिन पानी के हे दुकाल। ऊपरवाला अब सम्हाल।। का पीसन अब रोज-रोज। जाँता मा अब खोज-खोज।। लागा-बोड़ी दीस बोज। मिलय नहीं भरपेट भोज।। बइला छेल्ला फिरै खेत। कोन करत हे तको चेत।। सउँहे ला खेदार देत। मूरति पूजा करै नेत।। जीतेन्द्र निषाद "चितेश"

हरिगीतिका छंद

                    हरिगीतिका छंद सुन संगवारी मोर द्वारी,खोजथस का रोज के । का सोन मिलही मोर घर मा,झाँकथस का खोज के।। अब चोरहा कस काम करके,मीत झन बदनाम कर। सब छोड़ के अलकर करम ला,मेहनत के काम कर।।

हरिगीतिका छंद

                हरिगीतिका छंद कचरा हवै नाली म बिक्कट,गाँव के हर घाट मा। अब कोन करही साफ-सुथरा,गाँव के हर बाट मा।। ए सोच के झन मौन रइहौं,हाथ आघू ले करव। अब थाम के खुद फावड़ा ला,साफ जुरमिल के करव।।

हरिगीतिका छंद

                  हरिगीतिका छंद अब गाँव लागे ना शहर गा,जाम नाली हा परे। कचरा समागे माढ़गे जल,भूसड़ी भुनभुन करे।। जब चाब दे कोनो ल मच्छर,फेर डेंगू ज्वर चढ़े। झन रोग फैले कर सफाई,दू कदम आघू बढ़े।।

हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद अब जान लव ये राज ला सब,साफ रखिहौ गाँव ला। कचरा ल कूड़ादान मा रख,याद रख लव ठाँव ला।। सब रोग-दुरिहा भागही जी,चार पइसा बाँचही। बीमार नइ पड़हू त संगी,कोन काबर जाँचही।।

हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद नवरात के नवदिन म भज लौ,मातु के नवरूप ला। हे माँ भवानी राखबे तैं,दूर दुख के धूप ला।। लाँघन मरे कोनो कभू झन,एक बीता पेट बर। आशीष बरसाबे सदा तैं,अन्न सब घर चेत कर।।

हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद अब घूस बिन नइ होय राजा,काज हा संसार के। ईमान खो गे सच म सबके,खोज दीया बार के।। परिवार मा नइहे सियनहा,सीख दे ईमान के। जम्मों जघा हो गे ठिकाना,घूस कस शैतान के।।

हरिगीतिका छंद

                हरिगीतिका छंद अब का करे लाचार जनता,घूस बर बाबू पड़े। हर रोज सरकारी ठिहा मा,खाय अधिकारी बड़े ।। देवत हवै चुपचाप जनता,हाथ मा कुर्सी तरी। अब घूस ले कलजुग म बनथे,काम हा काबर सरी।।

हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका  छंद रावण ल मारे बर उठाइस,जब धनुष ला राम हा । लछमन घलो होगे खड़ा गा,मातगे संग्राम हा ।। बादर डहर भागे दशानन,छोड़ के मैंदान ला । तब बाण मारिस राम हा अउ,खोय रावण जान ला ।।

हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद फल मेहनत के चीख लव,होथे अबड़ गुरतुर सहीं । जे चीख लेथे एकदम,भावै नहीं अउ फल कहीं।। चोरी-चमारी छोड़ दव,अब चोरहा मन गाँव मा। मिहनत करव जाके शहर ,अउ खाव फल हर ठाँव मा।।

हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद हे नौकरी मा मीत हा,भुलगे मितानी ला हमर। बरसत हवय रुपया ह बड़,सच मा दिखावत हे असर।। अतका चिन्हैं नइ मीत हा,आघू म रहिके मीत ला। भुलगे किसनहा जान के,जोहार के सब रीत ला।।

आल्हा छंद

आल्हा छंद सुन लव संगी एक कहानी,राज रिहिस गा सोनाखान। होइस राजा नारायण सिंह,करिस काज गा अबड़ महान।। अपन रियासत ला उन घूमैं,घोड़ा मा चढ़के हर रोज। परजा के हितवा राजा हा,सुनय गोठ ला जाके सोज।। कोनो मनखे बात बताइस,हे नरभक्षी बघवा एक। जाके सोज्जे मार डरिस गा,एक्के झन बघवा ला छेंक।। देख वीरता नारायण के,अंग्रेजन सोचे गम्भीर। ब्रिटिश राज के अंग्रेजन मन,दे दिस पदवी उन ला वीर।।

आल्हा छंद

आल्हा छंद विषय-धनतेरस हे धनवंतरि गुणी देवता,आयुर्वेदिक रचे विधान। अब झन कोनो रोगी होवय,करबे सबके रोग निदान।। ये कलजुग मा मँहगा होगे,जम्मों डॉक्टर करा इलाज। भूखमरी मा जीयत मनखे,कइसे प्राण बचाही आज।। खेत-खार मा काम करइया,जम्मों मनखे रहे निरोग। तभ्भे होही खेती-बाड़ी,मिलही सबला छप्पन भोग।। धनतेरस के दिन गरीब बर,माँगव मैंहा इक वरदान। बिन इलाज अउ बिन पइसा के,छूटे झन गरीब के प्रान।।

आल्हा छंद

आल्हा छंद गाँव-शहर मा सबो मनावौ,जुरमिल के देवारी आज। बिन झगड़ा अउ झंझट के गा,करव सदा सुग्घर हर काज।। करे किसनहा अब का संगी,बिन मउसम होवय बरसात। एसो के देवारी मा अब,धान लुवाये जरई आत।। छाए हवय उदासी घर मा,कइसे हर्षित दीप जलाय। अब दिनभर दुख के आगी हा,रही रहीके भभकत जाय।। लाँघन मन ला भात खवावौ,मानवता के अलख जगाव। संगीमन अब देवारी मा,झोला भरके पुन्न कमाव।।

शंकर छंद

शंकर छंद मन हा मइला कतको झन के,देह हवय निरोग। रोय कबीरा जब ये देखे,करय योगी भोग। अब का होही जनमानस के,करय अलकर संत।  चेत हराही मनखेमन के,दान पुन के अंत।

शंकर छंद

शंकर छंद अब चुनाव मा पंचायत के,बिकट बाँटे नोट। कोनो लालच मा झन पड़िहव,दिहू खच्चित वोट। आघू आवव दीदी भइया,करव सब मतदान। पाँच बछर मा आथे पारी,चुनव नेक सियान।

शंकर छंद

शंकर छंद जब ले आ हे हार्वेस्टर हा,लुये अब्बड़ धान। लउहा होथे काम-बुता हा,जान डरिन किसान। एक डहर हे बिकट फायदा,आन हे नुकसान। बिन रोजी बनिहार रहय गा,अबड़ के परसान।

विष्णुपद छंद

विष्णुपद छंद सबो पंच अब मिलके चुनही,उपसरपंच घलो। झन खोवव गा ईमान अपन,दू पग संग चलो। अब चुनाव मा लालच के बड़,फइलत हवय तना। बने आदमी ला अब सँगी,उपसरपंच बना।

जयकरी छंद

चौपई छंद बिगड़े मौसम बारों मास। टूटे गा किसान के आस।। बारिश मा बरसा नइ होय। जाड़ घरी जब बिकट रितोय।। गेहूँ तिंवरा होगे नाश। बनगे खेती जिन्दा लाश।। सब किसान ला दिस जब बोज। धरके माथा रोवय रोज।।

जय

चौपई छंद रोजगार हे जेकर पास। होही ओकर पूरा आस।। जम्मो दिन खाही उन खीर। बनही जिनगी मा उन वीर।। घूमत हावय जे बेकार। जप लव मंतर एक्के बार।। काम-बुता मा ध्यान लगाव। दू पइसा ला रोज कमाव।।

जयकरी छंद

चौपई छंद महँगाई के झेलत मार। आ गे  होली हमर तिहार।। होगे तेल एक सौ बीस। कइसे चुरही भजिया तीस।। महँगाई के देखव रंग। ऊपर ले मौसम छतरंग ।। कइसे मनखे खुशी मनाय। बिन बादर बरसा हो जाय।। बैरी बनगे मौसम आज। बिगड़त हावय जम्मो काज।। होय करा-पानी बरसात। वो किसान ला मारै लात।। बेसन के अब बढ़गे टेस। देवत हावय सब ला ठेस।। रंग गुलाल उड़ाही कोन। का खाही मनखे सिरतोन।। जलके होगे आसा खाख। अब किसान के नइये साख।। ऊपरवाला सब ला राख। रोय कभू झन एक्को पाख।।

जयकरी छंद

चौपई छंद विज्ञापन के देखव हाल। उघरा तन अउ अलकर चाल।। सोप लिरिल  के देखव झाग। उज्जर होवय करिया काग।। फूहड़पन के हे भरमार। धारावाहिक पिक्चर झार।। देख सकस नइ एक्को बार। जुरमिल बइठ सबो परिवार।। छेड़छाड़ अब होवत कार। मनखे भूलत हे संस्कार।। घोर दुराचारी अब भोग। होवत हवय मानसिक रोग।। नइये दशा-दिशा अब ठीक। लइका सँग बइठव नजदीक।। माँ-बाबू के मानौ बात। नइ खावव तुम कभ्भू लात।। यौंन सीख के देवव ज्ञान। सब नारी के राखव मान।। अलकर कभू करव झन काम। बोलव हरदम जय जय राम ।।

जयकरी छंद

चौपई छंद मोटर सइकिल गाड़ी कार। तेज चलावय बइठत भार।। कतको झन के आदत झार। थोरिक समझव करव सुधार।। नइ सकहू तुम गाड़ी रोक। जाके देहू सोज्जे ठोक।। आने ला करहू नुकसान। नइ ते खोहू अपन परान।। दू पहिया चालक के शान। हेलमेट हा ताज समान।। जब गाड़ी मा जावव यार। हेलमेट पहिनव हर बार।। यातायात नियम ला जान। पोलिस नहीं करय परसान।। ट्रैफिक सिग्नल के दू रंग। हरियर भागे लाल दबंग।। गाड़ी बीमा कागज राख। डिग्गी मा धरके हर पाख।। लायसेंस धर संगेसंग। नइ होवय पोलिस ले जंग।।

चौपई छंद

चौपई छंद सुन किसान के पीरा आज। बोलत हावय केंवटराज।। आठ पहर उन करथे काम। दिनभर जरैं काम मा चाम।। चाहे सब्जी या हो धान। करथे कीरा बड़ परसान। रोग निवारक दवई डार। होवय शाखा दू ले चार।। करथे माहू अतियाचार। पक जाथे जब फसल ह मार।। फेर खेत मा दवई डार। खरचा बढ़थे कई हजार।। महिनत करय धान उपजाय। बूँद-बूँद मा घड़ा भराय।। बिन बादर बरसा हो जाय। फेर करा-पानी डरवाय।। कतको झन के घर मा धान। खावय मुसवा लेवय प्रान।। ऊपर ले सुरही शैतान। रोज करय अब्बड़ हलकान।। मंडी मा जब जावय धान। ठाड़ होय बनिया के कान।।  औने-पौने लेवय दाम। अउ किसान के बिगड़े  काम।। कइसे बनही सबल किसान। ऋण मा खोवत हावय प्रान।। मिलके अइसन करव उपाय।कमई खावत दिवस पहाय।।

जयकरी छंद

भीगे चना खावव चना-फुटेना रोज। कुष्ठ रोग हा भागे सोज।। आरुग हावय सरल सुझाव। रतिहा बोरव बिहने खाव।। खाली पेट जेन हा खाय। चर्बी ओकर घटते जाय।। कँगला मन बर हरे बदाम। कम कीमत मा चमकै चाम।। होय फाइबर ले भरपूर। करथे उदर रोग ला दूर।। खून साफ कर नस मा भेज। करथे बड़ दिमाक ला तेज।। भीगे चना सबो झन खाव। नान्हें बड़का रोग भगाव।। एक मुठा मा हावय जोर। खावय रोगी भागय खोर।। क्लोरोफिल फास्फोरस संग। मिनरल के मिलथे नवरंग।। देथे तन ला ऊर्जा फेर। नइ लागय मनखे ला ढेर।। भीगे चना संग गुड़ खाव। अउ खोए पुरुषत्व जगाव।। एकर कतका करँव बखान। अब्बड़ गुण के हरे खदान।।

जयकरी छंद

चौपई छंद नइहे राजा निष्ठावान। खोजे परजा मा ईमान।। काम करय खुद हरदम खीक। पर ला कइथे नइहे ठीक ।। जेन खुदे हे बड़का चोर। हाथ ओकरे सत्ता डोर।। कइसे करही बने नियाव। चोरी करके बनही साव।। मीठ-मीठ बड़ करके गोठ। खावय कुकरा रोज्जे पोठ।। निष्ठा ला पानी मा बोज। खिल्ली मारय सातों रोज।। एकर कारण ला अब जान। अड़हा ज्ञानी अउ विद्वान।। घर के बुढ़वा मांगै भीख। कोन दिही निष्ठा के सीख।।

जयकारी छंद

एक नवा अब आ गे रोग। कोरोना काहत हें लोग।। फइलत हावय जम्मों देश। होगे सबला    जबर कलेश।। खाइन चमगादड़ अउ साँप। चीन सकिस नइ एला भाँप।। कोरोना के फइलय रोग। चीनी करय अबड़ के सोग।। जब कचलहा रहय गा माँस। अब्बड़ खावय बिक्कट हाँस।। ले लिस कतको झन के प्रान। तब समझिन गा चीन जपान।। सर्दी खाँसी संग बुखार। जब छींकाशी आवय यार।। टिश्यू पेपर करव प्रयोग। नइ फइले दूसर ला रोग।। जब रोगी होवय गंभीर। साँस लेय बर होय अधीर।। तड़पय जस बिन पानी मीन। इह ओकर लक्छन गउकीन।। खेवन-खेवन धोवव हाथ। सेनिटाइजर साबुन साथ।। रोज्जे मुँह मा मास्क लगाव। कोरोना ला दूर भगाव।। तीन फीट दुरिहा मा जाव। तभ्भे ककरो सँग बतियाव।। अइसन संदेशा बगराव। जन-जन के तुम प्रान बचाव।। जेवन जेवव सादा भात। पीयव पानी तातेतात।। तन ला रखव सदा सब गर्म। सुग्घर करव सदा हर कर्म।। कोरोना के लक्क्षन पाय। डॉक्टर कर जी तुरत दिखाय।। सबले बढ़िया इही उपाय। कोरोना ला दूर भगाय।।

कविता

हमर घर मा हमर कोठी,भरे हावय धान। सोच के झन घूम बेटा,काम मा दे ध्यान।। कतिक दिन ले पूरही गा,सिराही सब खान। मेहनत ले पेट भरही, कथे सबो सियान।। जेन बइठे खाय बेटा,कहाँ खाही भात। चोर बनके पेट भरही,अबड़ खाही लात।। पुलिस डंडा मारही गा,छूट जाही प्रान। काम करबे ठीक तभ्भे ,बने रइही शान।। आन हे तब शान हे जी,बिना एकर लाश। मोर तै आधार बेटा,खेल झन गा ताश।। सबो धन ला फूँकबे तब,कहाँ पाबे धान। छोड़ दे अब जुआँ खेलइ,मोर कहना मान।। रोज पीबे दारु बेटा,अपन करबे नाश। तोर लीवर दारु खाही,सोचबे तै काश।। फेर डॉक्टर मेर जाबे,लिही अब्बड़ दाम। त्याग दे अब दारु पियई,बने रइही चाम।।

रूपमाला छंद

सब जिनिस के भाव बढ़गे,देश रोवय आज। तोर सेती ए करोना,रूकगे सब काज।। काम बिन नइये ग पइसा,का बिसाही साग। घोर कँगला के कसम से,फूटगे अब भाग।। बर बिहा के काम टरगे,बाप हे परसान। सेठ करले ब्याज मा जी,चार पइसा लान।। ब्याज बाढ़े काज माढ़े,खर्च पइसा होय। बाप चिन्ता मा जरे जब,देख बेटी रोय।। खेत सुन्ना खार सुन्ना,गाँव मा सब खोर। जब पड़िस डंडा पुलिस के,घर खुसर करजोर।। देश आने कोन घूमिस,जेन हे धनवान। फेर जब्बर मार खाइस,जे बनिस नादान।। अब सबो टरगे परीक्षा,छात्र झन कर नाज। लेय जिनगी हा परीक्षा,कर्म सुग्घर साज।। नानकुन ए वायरस हा,कर डरिस बड़ हीन। फेर कोनो झन मरय जी,खोज अब वैक्सीन।।

रूपमाला छंद

रूपमाला छंद घोर दानी दे खजाना,कर दिखावा मार। मीडिया ला घर बुलाके,दान देवय झार।। दान देवत खींच फोटू,फेसबुक मा डाल। बेच बैपारी सहीं अब,दाम में हर माल।। दान करके नाम चाहे,लेड़गा इंसान। जब करम अइसन करय तब,बुद्धि दे भगवान।। बिन सुवारथ हो भलाई,हो कलेचुप दान। हाथ डेरी झन ग जानै,तब हवय बड़ मान।।

रूपमाला छंद

रूपमाला छंद चोर बइठे राजगद्दी,देय अड़हा ज्ञान। साव मनखे जेल भोगे,खोय ज्ञानी मान।। पेज बर तरसे कमइया,खीर ठलहा खाय। रोज कँगला दान देवय,घोर कलजुग आय।।

रूपमाला छंद

रूपमाला छंद साव गुरुजी रोय रोना,अब करन का रोज। स्कूल के चाउँर ल बाँटय,छात्र छात्रा खोज।। चार मा आधा किलो कम,दार बर हुड़दंग। गाँव भर मा ए करोना,होय काबर जंग।।

शक्तिछंद

शक्ति छंद बिकट बेचथस गाँव भर मा बही। दही संग मा रोज के तैं मही।। रथे चीज हा तोर आरुग खरा। इही पाय सब लेय तोरे करा।।

शक्ति छंद

शक्ति छंद झरे हे बिकट,खेत के धान हा। करा ले हरागे,हमर ध्यान हा। लुवन का फसल,रेगहा खेत मा। कमाई ह खोगे,असो रेत मा।

सोभन छंद

सोभन छंद ढोंगिया जे साधु हावय,खाय छप्पन भोग। देय गीता ज्ञान भारी,संत मानय लोग।। प्रेम से अउ साफ-सुथरा,जे मिलय उन खाय। बिन सुवारथ ज्ञान बाँटय,संत उही कहाय।।

सोभन छंद

सोभन छंद ज्ञान देबे शारदे माँ,जेन बाँटय ज्ञान। कभु दिखावा मा बुड़े झन,पाय हरदम मान।। नित करय साहित्य सेवा,बिन सुवारथ रोज। वइसने हे शारदे माँ,गुरु मिलय बिन खोज।।

रोला छंद

रोला छंद-जितेन्द्र कुमार निषाद राधा कड़ही राँध,डार के आमा अमली, दही मही नइ शुद्ध,चना के बेसन असली। मिलवट के ए दौर,दार मा माटी गोटी, बनिया रोज मिलाय,हवय नीयत हा खोटी।। सबो जिनिस हा आज,एकदम हावय नकली, करे अबड़ नुकसान,रोग होवय जी असली। जे मनखे हा खाय,संग नइ देवै गुर्दा, चिटिक बछर के बाद,चिता मा पहुँचे मुर्दा।। पइसा सेती झार,लोभ मा मनखे पड़ के। मानवता ला भूल,करय मिलवट अब बड़ के अपन सुवारथ छोड़,डरव सब मानव हरि ले। कभू काकरो फेर,घेंच झन रेतव तरि ले। छंदकार-जितेन्द्र कुमार निषाद गाँव-सांगली,पोस्ट-पलारी तहसील-गुरुर,जिला-बालोद

त्रिभंगी छंद

त्रिभंगी छंद बरसा रितु आ गे,किस्मत जागे,सब किसान के,भाग बने। अब कर जोताई,अउ बोवाई,खेत-खार के,पाग बने। ए मोरे भाई,धरती दाई,सोन उगलही,खान बने। महिनत कर मनखे,तभ्भे तन के,भूख मिटाही,जान बने।

छन्न पकैया छन्न पकैया छंद

छन्न पकैया छन्न पकैया छन्न पकैया छन्न पकैया,पूरा आ हे भारी। खेत-खार घर-द्वार बुड़े हे,बुड़त हवय नर-नारी। छन्न पकैया छन्न पकैया,जेवय का भर थारी।  लाँघन भूखन मरत हवय अब,लइका अउ महतारी। छन्न पकैया छन्न पकैया,हाँसत हे बैपारी। करय मुनाफाखोरी भइया,माल रपोटय भारी। छन्न पकैया छन्न पकैया,देखत हे लाचारी। ऊपरवाला जम्मों झन के,हवय मौन अहु दारी। जितेन्द्र कुमार निषाद

सरसी छंद

सरसी छंद पारबती के प्राण पियारा,शिव के गणपति लाल। अघ्घा सुमिरत हँव मैं तोला,तिलक लगावत भाल। जग मा आ हे विपदा भारी,कोरोना बन काल। घर मा खुसरे मनखेमन के,होगे बारा हाल। कोरोना संकट हा झटकुन,जग ले अब मिट जाय। सुनले हे गणपति गणराजा,एकर बता उपाय। पूरा पानी मा बूड़े हे,कतको खेती-खार। कतको घर-कुरिया ओदरगे,अइसन विपदा टार। महँगाई हा धीरे धीरे,बिक्कट बाढ़त जाय। माल रपोटय बैपारी हा,कँगला जेब दिखाय। रोज कमाके खरतरिहा मन,कहाँ पेटभर खाय। दूध भात खाके बइठाँगुर,रोज्जे मजा उड़ाय। ऊँच-नीच के भेद मिटे अब,सबो पेटभर खाय। अइसन किरपा होय गजानन,कोनो दुख झन पाय। जितेन्द्र कुमार निषाद सांगली,गुरुर,जिला-बालोद

बरवै छंद

बरवै छंद बरसा के पानी ला,चिटिक बचाव। जल संरक्षण बर अब,बाँध बनाव। नहर बनाके नंगत,पानी पाव। खेत खार मा देके,फसल उगाव। होही कँगला मनखे,मालामाल। जिहाँ बिना पानी के,परे दुकाल। सबो डहर रइही जल,बारो मास। तरिया नरवा नल ले,बुझही प्यास। वाटर लेबल बढ़ही,भुँइया फोर। सबो डहर बोहाही,खोरे खोर। अबड़ फैक्टरी खुलही,जल पहुँचाव। काम करत बेकारी,दूर भगाव। दशा सुधरही जन के,बढ़ही टेस। रोजी बर नइ जावय,आने देस। जितेन्द्र कुमार  निषाद सांगली,गुरुर,जिला-बालोद

बरवै छंद

बरवै छंद खोजत आबे सजनी,तैं हर ठाँव। पुन्नी के अधरतिहा,मोरे गाँव। देखत रइहूँ रद्दा,खोरे-खोर। अउ आ जाबे सजनी,कोरे-कोर। पीपर के छँइहा मा,हवय मकान। छितका कुरिया नानुक,सरग समान। चहकय चिरई-चिरगुन,लेके नाँव। पुन्नी के अधरतिहा,मोरे गाँव। फूले हावय सुघ्घर,दसमत फूल। घर के अँगना मा जी,झूला झूल। द्वार लिपाहे घर के,गोबर डार। चउँक पुराहे सुघ्घर,चमकय द्वार। चंदा-चंदेनी मन,खेलय दाँव। पुन्नी के अधरतिहा,मोरे गाँव। बरसत हावय नंगत,मया दुलार। बिन पानी बिन बादर,हमर दुआर। कहिनी कस बतिया हँव,एक्के घाँव। मोर मया मा भीगत,सजनी पाँव। सोज पहुँचगे सजनी,मोरे ठाँव। पुन्नी के अधरतिहा,मोरे गाँव।

रूपमाला छंद

फूल खाही भोज सोन होगे एक रोटी,कंगला का खाय। रोज करथे काम तभ्भो,पेट नइ भर पाय। पेट मा खाँचा खनागे,या हमागे भूत। झार महँगाई सताथे,सुन ग बड़हर पूत। बड़ जमाखोरी करय जी,सेठ साहूकार। दर बढ़ावय माल पावय,अउ करय बइपार। सेठ सेती कंगला हा,खाय आधा पेट। पूर नइ पावय ग पइसा,बाढ़गे जब रेट। ठोसहा कानून होवय,ध्यान दे सरकार। जेन हा अलकर करय जी,चार टेम्पा मार। बंद भ्रष्टाचार होही,अन्न पाही रोज। कंगला बड़हर सबो झन,फूल खाही भोज। जितेन्द्र कुमार निषाद सांगली,गुरुर,जिला-बालोद

दोहा छंद

दोहा छंद  एक बिता ए पेट बर,बनी करय बनिहार। बड़हर मन के द्वार मा,खोज-खोज के झार।। संझा-बिहना रात-दिन,अब्बड़ करथे काम। नइ देखय बनिहार मन,जुड़ पानी अउ घाम।। खेत-खार घर-बार मा,गाँव -शहर परदेस। सबो जघा बनिहार हा,मिहनत करय बिसेस।। कतको झन बनिहार ला,देथे गारी सोज। तभो कलेचुप काम ला,हँस के करथे रोज।। छितका कुरिया मा रथे,खाके बासी पेज। तभो रथे बनिहार खुश,बिन जठना अउ मेज।।

सुंदरी सवैया

सुंदरी सवैया  मँदहा मन हा झगरा करके,मनखे मन ला बड़ के डरवाथे। कतकोन जघा मँदहा मन हा,कुटहा कस मार तको बड़ खाथे। रतिहा कउनो कर तो बधिया कस,वो चिखला म घलो सुत जाथे। मँदहा मन के करनी बलदा,परिवार तको बड़ के दुख पाथे।

दुर्मिल सवैया

दुर्मिल सवैया बइला कस रोज बुता करके,बइपार करे बर तानस जी। तिसना करके थइला भरके,पइसा ल सही प्रभु मानस जी। हिजगा करके बइला मनखे,अँगना पर के बड़ खानस जी। कतको धन जोड़ डरे,अउ दान करे ल कभू नइ जानस जी।

दुर्मिल सवैया

दुर्मिल सवैया हिजगा करबे इरखा बढ़ही,तिसना करबे जिवरा जरही। कथनी-करनी अलगे रइही,जब स्वारथ मा मनखे परही। पुन के धन-दौलत हा घटही,जब पाप घड़ा लउहा भरही। सिरतोन उही जग मा तरही,परमारथ जे मनखे करही।

दुर्मिल सवैया

दुर्मिल सवैया तज के तिसना,हिरदे अँगना,किसना किसना मनवा जप ले। चिटिको भटके जप के रसता,अउ मोह मया म फँसे चप ले। परमारथ तैं करते चलबे,कुबरा झन हो करनी लप ले। जतका बढ़िया करनी करबे,भवसागर ले तरबे टप ले। जितेन्द्र कुमार निषाद

सुंदरी सवैया

सुंदरी सवैया जिनगी भर पुन्न कमालव,दीन-दुखी मन के,करके नित सेवा। कउनो कँगला घर आवय,माँगय देवव जी मिसरी अउ मेवा। कउनो कँगला ल कभू,कँगला कहि के,झन देवव रोज उठेवा। कतको मनखे बर सौंहत मा ,बन जावव गा असली पनदेवा।

दुर्मिल सवैया

दुर्मिल सवैया  बरसा बढ़गे नरवा भरगे,तरिया भरगे सब हा तरगे। नरवा करके कतको धनहा,कुछु खेत घलो बुड़ के सरगे। बड़ रोवत हे ग किसान ह,ए करजा बढ़गे सनसो परगे। कइसे छुटहूँ करजा सबके,जब शासन हाथ खड़ा करगे।

अरविंद सवैया

अरविंद सवैया कतको मनखे मन के घर मा,नइहे सुमता सुनता कस छाँव। जब सास-बहू हर रोज करें,हिजगा करके कउँआ कस काँव। पइसा बर होवय गा झगरा,छुटका -बड़का भइया कइ घाँव। सँघरा रइही मिल के लगही,झगरा बिन स्वर्ग बरोबर ठाँव। जितेन्द्र कुमार निषाद

अमृतध्वनि छंद

नर - नारी मन संग मा,नींदें खेती खार। घाम प्यास झेलय अबड़ ,जाँगर टोरत झार।।  जाँगर टोरत,करय किसानी,दुनों परानी। चटनी बासी,खाके बोलय,गुरतुर बानी।। बढ़िया होही,धान पान हा,जब यहु दारी। लइका मन ला,बने पढ़ाबो,हम नर नारी।।

सुंदरी सवैया

सुंदरी सवैया कतको मनखे डिगरी धर के,बइला कस घूमत हावय संडा। बइपार करे बिन खेत म काम करे बिन,वो पड़ जावय ठंडा। बढ़ई दरजी कर वो नइ दे अरजी,नइ सीखय ए हथकंडा। जब शासन सेवक के नइ हे पदवी ,श्रम से जल पी भर हंडा। अढ़हा मनखे हर पालत पोसत,बेचत हे कुकरी अउ अंडा। अउ जीयत हे जिनगी सुख से,कुनबा सँग मा सिखके श्रम फंडा। डिगरीधर चोर सहीं करनी करके,बड़ खावय पोलिस डंडा। करनी कर ले अब जाँगर टोरत,ए भुँइया म इही धन हंडा। जितेन्द्र कुमार निषाद सांगली,पलारी,जिला-बालोद

अमृतध्वनि छंद

अमृतध्वनि छंद मंडी लेगे धान ला,नइ पावय जब दाम। होके दुखी किसान हा,रोवत बोलय राम।। रोवत बोलय,बनिया मन के,हरे जमाना। कम कीम्मत मा,लेके नंगत,भरे खजाना। बढ़िया नइ हे,तोर धान हा,चाँउर खंडी। घर लेजा तैं,तोर धान ला,जावन मंडी। करकस बोलय सेठ हा,मुड़ धर रोय किसान। अइसे लागय गोठ हा,हिय ला बेधे बान।। हिय ला बेधे,बान बरोबर,वोकर बोली। करके नखरा,बिना तमंचा,मारय गोली। तब किसान हा,रोवय नंगत,होके नरभस। लाहव लेवय,मुंशी-बनिया,बोलय करकस। जितेन्द्र कुमार निषाद सांगली, जिला-बालोद, छत्तीसगढ़

सुंदरी सवैया

सुंदरी सवैया पइसा बर तो झन टूटय जी,कउनो रिसता अइसे तुम ठानौ। कतको झन लानय ,माँग सगा करले पइसा,लउटाय ल जानौ। बहिनी भइया कर,खेत हिसा झन माँगय, मान-मया पहचानौ। धन दौलत तो सुख साधन ए,रिसता सबले बड़का तुम मानौ। जितेन्द्र कुमार निषाद

आल्हा छंद

आल्हा छंद-अमर बिलासा दाई शुरू करत हँव एक कहानी,मातु बिलासा जेकर नाँव। परशु राम केंवट के बेटी ,जनम धरिन वो लगरा गाँव। माँ बैसाखा एकर माता,दया-मया के हीरा खान। पाय इही गुण मातु बिलासा,जीयय जिनगी संत समान। कटकट जंगल रिहिस अबड़ के,अरपा नदिया भुँइया तीर। घूमत पहुँचय रामा केंवट,उहाँ बनालिस अपन कुटीर। कलकल करके गीत सुनावय,अरपा नदिया पानी संग। घूमर घूमर के नाचय वन,केंवट कुनबा घलो मतंग। हरियर हरियर डारा-पाना,कोयल कूकय कुलकै अंग। अइसे लागय कोनो योद्धा,बिन लड़ई के जीतय जंग। गंगा कस पबरित हे अरपा,जेमा नंगत राहय धार। केंवट कुनबा मछरी मारय,डोंगा खेवय फाँदा डार। थरथर काँपे अरपा नदिया,धरे बिलासा माँ पतवार। डोंगा खेवय चाल बढ़ावय,सबो मरद मन मानय हार। एक बार जम्मों मनखे मन,गेय रिहिन अरपा के घाट। वन के बरहा हमला कर दिस,वोकर गरदन रख दिस काट। जघा जघा बड़ चरचा होवय,मातु बिलासा मारय तीर। बइरी मन के हिरदे बेधय,रख देवय छाती ला चीर। मरद बरोबर मातु बिलासा,साँय साँय चालय तलवार। बइरी मन अधरे ले भागे,घोड़ा मा जब होय  सवार। मातु बिलासा जब किकियावय,बइरी धुर्रा सहीं उड़ाय। केती जावय कहाँ भठय वो,जग मा कभू नजर नइ आय। आँखी ले ज

बरवै छंद

बरवै छंद काकर मानी पीबे,संगी आज। अपन सुवारथ बर सब,करथें काज।। घूमत हावँव संडा,नइ हे काम। बिन पइसा के नइ हे,मोरो दाम।। जेन संगवारी हा,संग रहाय। बिपत परे मा वोहर,पीठ दिखाय।। दाई देवय गारी,कर कुछु काम। ददा सुनावय दू ठन,आठों याम।। दाई अउ बाई के,झगरा देख। मिटय हमर घर के अब,सुनता लेख।। बहिनी घलो सुनावय,संगेसंग। दशा देख के रइथँव,मैंहा दंग।। मँदरस बोली लागय,कड़ुवा लीम। मोला सुख देवइया,भइगे चीम।। कइसे समझावँव अब,सुध नइ आय। दिन-रतिहा के चिकचिक,बुध ला खाय।। सब सियान मन कइथें,सुन ग सुजान। रीस खाय बुध अउ बुध,खाय परान।। दे दव थोरिक धीरज,हे भगवान। बिना रीस के जीयय,हर इंसान।। जितेन्द्र कुमार निषाद सांगली,जिला-बालोद,छत्तीसगढ़